बोले किससे मन की साखी।।
नदी – नाल सब सूख गए।
बोले क्या रिश्ते की बैसाखी।।
गाँव का मनई शहर को भागा।
कब से टेर रहा मुंडेर से कागा।।
भूल गए सब स्नेह स्वजन को।
तोड़ गए क्यों मन का धागा।।
खाली-खाली बाग-तड़ाग सब।
बुझे – बुझे से राग-फाग सब।।
कास – पटेर में रन -बन भटके।
लुटे-पिटे से भाग-अभाग सब।।
पीपल नीम से डर कर बोले।
मन का भेद वो खुद पर खोले।।
काठ बने हम खड़े यहाँ पर।
मौसम भी प्रति पल विष घोले।।
तन मरघट मन आँगन सूना-सूना।
अपना दुख है,दुख से भी दूना।।
सुख की आस बड़ी है लम्बी।
काया कातर छाया क्या छूना।।
बैरी साजन प्रीत क्या जाने।
गाँव – गली की रीत क्या जाने।।
सदियाँ बीते पर भाव ना रीते।
दिल का दरद तो दिल ही जाने।।
संजय कुमार सिंंह
प्रिंसिपल, पूर्णिया महिला काॅलेज पूर्णिया-854301
6207582597