नजरों से जब भी देखा, नजर भर के देखा
जब भी देखा उसको, तो जी भर के देखा।
ऐ चाँदनी तुझसे चाँद, मिलता होगा रात को
मैने दिलबर को उजाले में, जी भर के देखा।
तपती है जब धरा, अंबर पिघलता मेघ बन
मैने हर बहार में जानां को, जी भर के देखा ।
बातें जेहन में अक्सर, मेरे रह जाती अधूरी
हर मुलाकात सिर्फ मैने, जी भर के देखा ।
उम्र तन्हा ही गुजरी, जाने कैसे सालो तक
उनसे मिलकर जिंदगी को, जी भर के देखा ।
कदम मिलाते वक्त से, खो रही थी खुशियां
संग उसके खुशनुमा पलो को, जी भर के देखा।
उसकी यादें मुस्कुराती है, लबों पर मेरे रात दिन
‘मन बंजारा’ ने अपनी मुहोब्बत को, जी भर के देखा।
रूपल उपाध्याय ‘मन बंजारा’
7043403803