स्मृति पट पर सोयी रहती,
कुछ तीखी कुछ मीठी सी,
इक प्रकाश दीप बन जलते,
हृदय की ये तमाम सिलवटें।
यादों की बेलगाम करवटें।।
जीवन धूसर संध्या सा नित,
उलझ रहा अंधकार सदृश,
सुप्त खगों सी विकल वेदने,
चंचल रेखाएँ तमाम गढ़के,
यादों की बेलगाम करवटें।।
कल कल निनाद सा वर्तन,
कुछ स्फुट अस्फुट सा नर्तन,
अनुरक्त हृदय बन बहके,
जल पल्लवन तमाम सहते।
यादों की बेलगाम करवटें।।
अभिलाषा प्रियतम से मिलती,
आसक्ति अधरों पर खिलती,
कुछ संकोच सरल बनते,
नि:शब्द मन मन्दिर की वन्दने।
यादों की बेलगाम करवटें।।
डाॅ•निशा पारीक जयपुर राजस्थान