अभी तो टुकड़ा भर हूं
ख़ुद को समेट लिया तो आसमां बनुंगी
बादलों से थोड़ी ऊपर हूं,
आसमां तो अभी नहीं हूं,
महकती बूंदों की तरह
रिमझिम बरसात बनूंगी
कोई गीत बनूं या संगीत बनूं
तेरे दिल में बजने वाली सितार बनूंगी
कोरे कागज पे अरमां लिखूंगी
अपने ही प्यार की पूरी कहानी लिखूंगी
अभी तो टुकड़ा भर हूं
ख़ुद को समेट लिया तो कोई कहानी बनूंगी।
कुछ भींगे अल्फाज़
नहीं रुकते जो तेरे लिए जज़्बात
और अपनी सारी परेशानी लिखूंगी
अभी तो टुकड़ों में हूं
जब तुमसे मिलूंगी तो
इतिहास की मानिंद
अनोखी कहानी बनूंगी।
अभी तो टुकड़ों में हूं
ख़ुद को समेट लिया तो आसमां बनूंगी
जो अंधेरे को रौशन करे वो उजियारा बनूंगी
जो जीवन रौशन कर दे
अपने प्रकाश से चमकने वाला
वो इकलौता मैं
ध्रुवतारा बनूंगी।
गुजरे वक्त सा,ना कभी गुजरुंगी
चमकूंगी जीवनपथ पे
मैं वो इकतारा बनूंगी
इतना सुरमयी होगा जीवन
जिसकी ना किसी ने कोई
कल्पना की होगी
अभी तो टुकड़ों में हूं
ख़ुद को समेट लिया तो आसमां बनूंगी।
इक ही दिल है मेरा
कई दिलों का सहारा बनूंगी
जोडूंगी लोगों को मानवता से
अहंकारियों को बियाबान दिखलाऊंगी
जीवनपथ पर मैं
इक नेक रास्ता चुन
सबको सही राह दिखाऊंगी।
अभी तो टुकड़ों में हूं
ख़ुद को समेट लिया तो आसमां बनूंगी।।
प्राची सिंह “मुंगेरी”