मन का पाखी एकाकी
तलाशता अंतरंग साथी
बढ़ा सम्बन्धों का सर्पदंश
नहीं माधुर्य का कोई अंश
सब कुछ रीता रीता सा
निष्ठुर हर पल तीता सा
अनुभव को है क्या बाकी
मन का पाखी एकाकी
अपरिचित हो रहा हर क्षण
जीवन बना एकाकी रण
मैं और मेरी छाया शेष
परिवर्तित स्थिति परिवेश
तीव्र वायु में मन बाती
मन का पाखी एकाकी
नयनों में बादल छाए हैं
मेघ बरसने वाले हैं
तिमिर छाया चारों ओर
इस निशा का कहाँ है भोर
मृगतृष्णा ही है बाकी
मन का पाखी एकाकी
डॉ टी महादेव राव 45-50-13/3 फ्लैट नं 202 आकांक्षा होम्स – 2
आबिदनगर पार्क के पास , अक्कय्यपालम
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