पनघट घट

पनघट घट भर पथ पे निकली,

सँग सखी मटकी ले चल दी।

मैं    ढूँढूँ   साजन  की   राहें,

देख मुझे पनिहारिन हँस दी।।

पिय की बाँट ये चितवन देखे,

पथ सूने पे पल पल निरखे।

प्रेम पिआस भरी है घट में,

पिय ना समझे रीत में अटके।।

इक  मुस्काए  इक  इतराए,

छब  मेरी  पे  बात  बनाए।

ये अँसुअन जल ही में लेकर,

नयन  मेरे  पथ  नेह  निहारे।।

प्रथम किरण सूरज की निकली,

प्रथम नेह की  आस अधूरी।

पनघट घट है जल से पूरा,

मैं प्यासी ज्यूँ  जल में मछूरी।।

 डॉ• निशा पारीक जयपुर राजस्थान