भीग गया हैं? क्यों, *दामन*

दामन कुछ इस कदर भिगों गया! मन

गम में था या थी? कोई खुशीं का! पल

आँखों से झर-झर गिरे वो पल, दो पल 

कहते – कहते फिर, थम गया था। मन

फिर क्यों? 

कुछ पल रूक कर, फिर बहते गए। 

तभी! वो मुस्कुराकर सामने है, आई

उसने! आँखों से आँखें मिलाई, 

देखकर! फिर यह बोलीं, 

आँखों को पोछकर आँचल से, 

इश्क करते हो…. 

क्या? अभी, 

नहीं! इश्क था, पहले कभी, 

अब तो, बस ये उसका आँचल हैं। 

बिते हसीन लम्हों की यादों में, 

जब! 

आँचल उसका कुछ इस कदर ढल

गया। 

उसी पल घायल ये दिल हो गए था।

अब आँसू तूम जो, यू ही पोछ रहें हो। 

आँखों से नहीं, दिल से बहं रहे। 

वो आँचल से हम बंध गए थे।

जिससे! 

आँखें तुम, पोछं रहे हो।अभी 

सौ. निशा अमन झा, “बुधे” 

जयपुर,