सोशल मीडिया पर व सामाजिक कामों में सक्रिय महिलाओं को नीची निगाह से देखने वाले अपनी मानसिकता बदलें: कोर्ट

अहमदाबाद । अहमदाबाद की अदालत ने कहा है कि जो लोग सोशल मीडिया पर एक्टिव और राजनीतिक दलों के राजनेताओं के साथ जुड़कर सामाजिक कामों में सक्रिय महिलाओं को नीची निगाह से देखते हैं, आज के समय में ऐसे लोगों को अपनी मानसिकता को बदलने की जरूरत है। अदालत ने ऐसी मानसिकता वाले लोगों को फटकार लगाई जो पॉलिटिक्स और सोशल मीडिया पर एक्टिव महिलाओं को ठीक नहीं मानते और उनके कमजोर चरित्र का होने का संदेह करते हैं। दुबई में रहने वाले एक व्यक्ति को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अपनी परित्यक्त पत्नी को गुजारा भत्ता देने के एक निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए अहमदाबाद की एक सेशन कोर्ट ने ये टिप्पणी की है। पति ने निचली अदालत के फैसले को ये कहकर चुनौती दी थी कि उसकी पत्नी नेताओं के साथ अपनी फोटो खींचकर उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करती है।
सेशन कोर्ट ने पति की दलील को खारिज करते हुए कहा कि यह उसकी पत्नी के चरित्र पर संदेह करने का कोई आधार नहीं हो सकता है। इस दंपति का विवाह 2008 में हुआ था। 2010 में एक बच्ची के पैदा होने के बाद महिला अपने मायके लौट गई और पति दुबई में एक कंपनी में क्लर्क की नौकरी करने चला गया। बाद में महिला ने एक मेट्रोपोलिटन कोर्ट में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता देने की मांग की थी। जबकि पति का कहना था कि उसकी पत्नी अपनी मर्जी से अपने मायके गई थी। जब गुजारा भत्ता का मुद्दा आया तो पति ने कहा कि उसकी पत्नी सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के साथ देखी जाती है और लगता है कि उसकी काफी अच्छी आय है।
पति ने अपनी पत्नी के जन्मदिन पर स्थानीय विधायक के साथ उसकी फोटो को पेश करते हुए महिला पर अनैतिक जीवन बिताने का आरोप भी लगाया। जबकि महिला का कहना था कि एक बच्ची के जन्म के बाद उसे ससुराल से जबरिया बाहर किया गया। क्योंकि उसकी ससुराल के लोग लड़का चाहते थे। मेट्रोपोलिटन कोर्ट ने फरवरी में पति को महिला और बच्ची के लिए 10,000 रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। सेशन कोर्ट ने भी उस फैसले को कायम रखा।