है इंतजार कि मंहगाई ज़रा घट जाए।
ख्वाइशों से मेरी तकरार सब निपट जाए।
मैं हूं आईना, सच मूं पे ही कह देता हूं,
जिसे बुरा लगे वो सामने से हट जाए।
वादा करके पलटने का चलन आम हुआ,
निज़ाम वो नहीं, जो वादों से पलट जाए।
झूठ , सच साफ़ साफ़ नजर आए फिर,
धुंध अफवाहों की,ऐ काश अगर छंट जाए।
सही खबरों के लिए अब बड़ी मशक्कत है,
बहुत डर है, नई पीढ़ी ना भटक जाए।
झूठ के साथ जमाने की आशनाई अब,
अब जो सच बोलूं तो,सायद ज़ुबान कट जाए।
जय प्रकाश विश्वकर्मा, मुम्बई