मन मसोसकर

पर्व – त्योहारों में बुलाता अपना गांव

मन करता है दौड़े जाऊं नंगे पांव

गांव की खुशबू और वहां की शोहरत

छोड़कर जाने, मजबूर करती जरूरत।

गांव की गलियों का वह लड़कपन

खुले पांव धूप में चलने की वह तपन

छोटों बड़ों को रंग लगाते होली में

घरों में घूमकर मिठाइयां खाते दीवाली में

पुकारता है दिल अपनी मिट्टी में जाने को

काम के साथ प्यार और संस्कार पाने को

गांव छोड़े थे, खोजने – पाने रंगीन सितारा

खोजते – खोजते मन थक कर हुआ बेचारा

सोचते जाऊं, पर मन ठिठकता कुछ सोचकर 

फिर काम पर बैठ जाते मन को मसोसकर।।

आनंद मोहन मिश्र

अरुणाचल प्रदेश

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