पक्षियों की महिमा

कभी देश के साहित्य 

और संस्कृति का 

पक्षी रहे अभिन्न हिस्सा

लेकिन अभी पक्षियों की 

हालत जानकार आता है गुस्सा

हंस के नीर-क्षीर विवेकी 

होने का मूल शुक्ल यजुर्वेद

जल से सोम अलग कर 

सकने की क्षमता है अभेद

यहाँ चकवा-चकवी जोड़े के 

दाम्पत्य प्रेम का आधार

वैदिक साहित्य में इसके 

गुणों की चर्चा है भरमार

‘उल्लू‘ के लिए वक्र दृष्टि की 

चर्चा है वैदिक काल-से

संभवतः उसकी बोली के कारण 

चर्चा आदि-काल से

संहिता, ब्राह्मण और आरण्यक, 

उपनिषदों में तैत्तिरीय

शायद इसीलिए तीतर 

साहित्य में बनता अन्तर्राष्ट्रीय

बाण –बद्ध पक्षी को देख, 

व्यथा से महाकाव्य बना 

कृष्ण बनते स्वयं वैनतेय-

विनतानंदन गरुड़ अनमना

जानते गरुड़ का वामपक्ष, 

बायां डैना, वृहत्साम-लोक है

शुक और काकभुशुंडी के 

बिना कौन-सी कथा संभव है

जिक्र रामचरित मानस में- 

जानि सरद ऋतु खंजन आए 

पक्षियों के व्यवहार-लक्षणों का 

रोचक उल्लेख मन भाए

काले रंग के पक्षियों ने तो 

यहां अपने वंश की वृद्धि

‘किलकिला’ हवा से सीधे 

मछलियां पकड पाते प्रसिद्धि

यहाँ पर तोता-मैना की तो 

अभी तक चर्चा भी नहीं की

खगों के मानवीकरण से 

भरा पडा इतिहास व्यवहार की

अब पक्षियों को तो धरा पर 

नहीं मिलता सुरक्षित स्थान

विहगों के लिए चिड़ीमारों की

नजर से बनता पीडास्थान

आनंद मोहन मिश्र

विवेकानंद केंद्र विद्यालय यजाली

लोअर सुबनसिरी जनपद

अरुणाचल प्रदेश

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