बकासुर

बकासुर एक राक्षस है जो किसी के पेट मे रहता, वो सदा भूखा रहता है जो कुछ भी कितना भी खा सकता है डकार नही आती उसे।बहुत सालो से उसकी चर्चा हो रही।इतना लिखा गया कि नेपा नगर की मिल भी कम पड़ गई।लोग जिद्दी है बकासुर की तरह उनका पेट भी नही भरता, तो लिखने बोलने वाले भी थकते नही।अब बकासुर हरे पेड़ खा रहा,फ़ाइल के साथ  लडकिया बच्चे  भी खा लेता,तालाब खाता मरी  मछलियां रह जाती।नदिया खाता,पहले सरस्वती गायब हुई,अब पर्यावरणविद कहते कैचमेंट एरिया गायब होने से नदिया गायब हो जाती।हेलीकॉप्टर सेना के गायब होते प्रशिक्षित अधिकारी खा लेता।सबसे अधिक जो जो खाया हमारा नैतिक स्तर  भाईचारा व विश्वास जो अब लड़की घर मे ही सुरक्षित नही।अतिथि देवो के देश मे बकासुर रूसी नागरिक चट कर गया।प्लाट जमीन नक्शा कुछ भी खा लेता।शुद्ध सात्विक प्रेम भी खा गया कि भगवान भी डर गया जमीन में चला गया ,कभी भी कही से मूर्तिया निकलती। एक बार एक गांव में गई तो देखा एक के दरवाजे पर पुरातत्व का स्तंभ लगा था उनकी पत्नी नकाशीदार पत्थर पर कपड़े कूट रही थी ,एंटीक के हिसाब से नही ध्वस्त मंदिर था उठा लाये थे कई घरों में लगे थे।और तो ठीक मौसम भी खा गया बकासुर,किसान बीज बोता तो खेच पड़ जाती बीज बेकार, दीवाली के दिन बारिश आ जाती खील बताशे  दिए की दुकान वाले हलकान हो जाते।सर्दी के कपड़े हीटर निकाल के बैठे रहे सर्दी आई ही नही।पके गेंहू पे पानी आ जाता गेंहू में काला दाग लग जाता फिर वो राशन की दुकान में आता।कई भाषाएं बोलिया प्रजाति के वनस्पति जानवर खा गया,वो म्यूजीयम में ही दिखते।इएलिये अब चांद व मंगल पे प्लाट काट रहे,मिट्टी ढुंढ ली खेती करेंगे बुकिंग भी चालू है अंतरिक्ष की।शायद वहाँ नही जायेगा,भूखा बकासुर। ऐसा बुकिंग करने वाले को लग रहा है।