प्रियतम मेरा करो श्रृंगार
मैं डूबी विरह की नैया,
तुम्हीं हो मेरी पतवार।
प्रियतम मेरा करो श्रृंगार।।
स्वप्न सांझ के उषाकाल में,
गए विकल देकर उत्पात,
सत्य तेरे बिन दर्दिल संसार।
प्रियतम मेरा करो श्रृंगार।।
माँग मेरी में मोती महके,
सूत्र सजे है सोलह श्रृंगार,
तुम ना मिलें सच्चा गलहार।
प्रियतम मेरा करो श्रृंगार।।
बुझे – बुझे से बहके बाहर,
भाव भवन मन मन्दिर आज,
नश्वर जगके शाश्वत आकार।
प्रियतम मेरा करो श्रृंगार।।
ध्यान धवल दोहरी दुनिया में,
सत्य प्रणय सच्चा सुख धाम,
मन शाश्वत में नित्य पुकार।
प्रियतम मेरा करो श्रृंगार।।
डॉ •निशा पारीक जयपुर राजस्थान