फगुनाएं हैं हमारे गजोधर भईया

हमारे मोहल्ले में गजोधर भईया रहते हैं। वे फागुनवादी हैं। बारिश का मौसम हो या तीखी गर्मी का उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। क्योंकि वे खांटी फागुन और बसंतवादी हैं। वह स्थायित्व को जड़ता मानते हैं। गजोधर किसी भी विचारधारा को ओढ़ते-दशाते नहीं। कहते हैं परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इसी सिद्धांत को उन्होंने आत्मसात किया है। वह मानते हैं कि जब गिरगिट रंग बदलता है तो हम क्यों नहीं, भला हम तो इंसान हैं। इसलिए फागुन उनके राग और रंग में रचा-बसा है। गजोधर भईया कहते हैं कि जीना है तो फागुन बनकर जियो। वह ऐसी गाय भी नहीं जो एक खूंटे से बधकर चारा-पानी के लिए रम्भाती रहे और अपने मालिक पर निर्भर रहे। वह स्वच्छंद बसंत हैं। खादी को उन्होंने कभी बिचार नहीं समझा बल्कि खादी उनके विचार में समाहित है।

गजोधर भईया खांटी खादीजीवी हैं। राजनीति में आने से पूर्व वह मैट्रिक फेल होने के बाद साईकिल की पंचर बनाते थे।राजनीति में जब उन्होंने अपना पहला कदम रखा था तो उन्हें चुनाव कार्यालय की साफ-सफाई और आगन्तुकों के देखभाल की जिम्मेदारी मिली थी। उस दौरान उनकी पार्टी हासिए पर थी, लोग नाम तक सुनना नहीं पसंद करते थे। लेकिन वक्त ऐसा बदला कि पार्टी-पार्टी न होकर बसंत बहार हो गयी। गजोधर भईया पार्टी अलाक़मान के खास बन गए। पहली बार टिकट मिलते ही विधायक बन गए।  हर सरकार में वह कैबिनेटमंत्री रहते हैं। हर पांच साल बाद हवा का रुख देख वह पलटी मार जाते हैं। जिस पार्टी का मिजाज फागुन जैसा होता है बस उसी का दुपट्टा होली मिलन के बहाने डाल लेते हैं।

गजोधर भईया सौ फिसदी चुनावजीवी हैं। दलबदल तो उनके जीन में समाया है। वह वामपंथ, दक्षिणपंथ, मार्क्सवाद, लेनिनवाद और गाँधीवाद के साथ सेक्युलरीज्म और धर्मनिरपेक्ष जैसी अनगिनत रंग-बिरंगी टोपियां अपने पास रखते हैं। जिस दल का फागुन बढ़िया दिखता उसकी टोपी सर पर रख लिया करते हैं। टोपी धारण करते ही उनकी धारणा बदल जाती है। गले में दूसरे दल का दुपट्टा सिर पर आते ही असली चुनावजीवी हो जाते हैं। दल बदलते ही उनकी विचारधारा के रंग भी बदल जाते हैं। 

गजोधर भईया गतिशीलता और प्रगतिवाद में इतना अधिक भरोसा रखते हैं कि उनके विचार और दर्शन को समझना आसान नहीं है। वह कहते हैं कि खिड़कियां खोलकर रखो तो बसंत की फ़िजाओं से हवा के रुख का पता चलता है। राजनीति का चतुर खिलाड़ी वहीं है जो तूफान की आहट को भाँप सुरक्षित ठिकाना तलाश ले। विपरीत मौसम से लड़ना वे समझदारी नहीं समझते। इसीलिए हर पांच साल में दल और दिल बदलते रहते हैं। 

गजोधर भईया का राजनीति में बड़ा नाम है। हर दल और सरकार में उनकी चलती है। क्योंकि वह जिस जाति से आते हैं वह सियासत की प्राणवायु है। राजनीति के वह बसंत बहार चेहरे हैं। किसी कि मजाल क्या उन्हें छेड़ दे। उनके पास समर्थकों की बड़ी फौज भी है। वह सरकार गिराने और बनाने का रिमोट खुद अपने हाथ में रखते हैं। कहते हैं कि मेरे पास रंगों का जादुवी पिटारा है। वह चाहे तो किसी का मुंहकाला कर दें या बासंती। इसी वजह से चुनावी बसंत आते ही वह सुरक्षित ठिकाने की तलाश में लग जाते हैं और मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह में कैबिनेट मंत्री का ताज पहनते हैं। फिर समर्थ तो भंग और ठंडई पीकर सावन में भी फागुन बन जाते हैं। कहते हैं बुरा न मानो होली है। बोल कबीरा…।

प्रभुनाथ शुक्ल

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