खुश हो जाती औरतें…
घर के सारे काम कर,
घर को सजाती औरतें ।
घर-बाहर की थकन
चाय के प्याले संग,
भुलाती औरतें ।
खुश हो जाती औरतें…
……………
टीवी-सीरियल संग,
जोड़ते हुए खुद को,
रोती-खिलखिलाती औरतें ।
तूफान दिल में लिए,
सेंकती रोटियों को,
चिक जाती औरतें।
खुश हो जाती औरतें…
……………
ज़रा तारीफ़ मिले,
भूलती गिले-शिकवे,
मासूम गुदगुदाती औरतें ।
पूरी शिद्दत से,
जुटती नेह लुटाने में,
मिट जाती औरतें ।
खुश हो जाती औरतें…
…………….
मुस्कुराते लबों में,
अश्क रूह में,
दफनाती औरतें ।
सुबह से साँझ तलक,
भूख मिटाने में,
भोग्या बन जाती औरतें।
खुश हो जाती औरतें…
……………
बेवजह सवालों के,
जवाब दे दें तो,
बनती बहसाती औरतें,
घुट जाएँ, चुप सहें,
रानी बिटिया, गऊ,
कहाती औरतें।
खुश हो जाती औरतें…
……………
हर उम्र में,
हर रिश्ते को,
सजाती औरतें,
त्याग-प्रेम क्या है,
छोड़ स्वार्थ को,
ये समझाती औरतें।
खुश हो जाती औरतें…
……………
बलाएं खुद पे ले,
बला क्यों ?
कहलाती औरतें,
बराबरी मांगते ही
नजरों में,
गिर जाती हैं औरतें।
खुश हो जाती औरतें…
………
सजग नज़रों से,
जो देखें,
तो बेशर्म औरतें,
झुकी नजरों से,
घर-समाज की,
शान कहलाती औरतें ।
खुश हो जाती औरतें…
……………
भीड़ में लोगों की,
तन्हा मन से,
बतियाती औरतें।
मुंह खोलते ही,
रिरियाती-खिसियाती,
बदनाम हो जाती औरतें।
खुश हो जाती औरतें…
……………
भावना अरोड़ा ‘मिलन’
अध्यापिका लेखिका एवं विचारक