:: दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर के राज्यों में भी महासभा की इकाईयां गठित कर हर कायस्थ की मदद करेगी : सुबोधकांत सहाय
:: महासभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में लिए गए अनेक निर्णय ::
इन्दौर । अ.भा. कायस्थ महासभा द्वारा दक्षिण भारत सहित देश के सभी राज्यों में समाज बंधुओं को एक सूत्र में बांधने हेतु महासभा की स्थापना की जाएगी। देश में 15 करोड़ कायस्थ बंधु हैं, जो उत्तर एवं दक्षिण भारत में फैले हुए हैं। महासभा ने निर्णय लिया है कि समाज का कोई भी बंधु किसी भी क्षेत्र में जो सहयोग चाहेगा, हर स्तर पर उसकी मदद की जाएगी। कांचीपुरम में भगवान चित्रगुप्त का ऐतिहासिक और भव्य मंदिर है, वहीं पूर्वोत्तर भारत में भी कायस्थ समाज के अनेक मंत्री राज्य सरकारों में पदस्थ हैं। पश्चिम बंगाल में दूर्गा पूजा की शुरुआत कायस्थ बंधुओं ने ही शुरू की थी। अब सारे देश में कायस्थ महासभा के माध्यम से समाज बंधुओं के लिए विभिन्न सेवा प्रकल्प शुरू करने का निर्णय लिया गया है।
अ.भा. कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री सुबोधकांत सहाय ने महासभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उक्त बातें कहीं। रविवार को हुए सामाजिक सम्मेलन के बाद राष्ट्रीय कार्यसमिति की इस बैठक में महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. मुकेश श्रीवास्तव, डा. ए.के. श्रीवास्तव, राष्ट्रीय महामंत्री विश्वमोहन कुलश्रेष्ठ, संगठन मंत्री पी.सी.एल. श्रीवास्तव, महासभा के प्रदेशाध्यक्ष मेजर जनरल (से. नि.) श्याम श्रीवास्तव, राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष कुलदीप माथुर के अलावा प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष सुशील कुमार निगम, चमन श्रीवास्तव, सुनील सक्सेना, जिलाध्यक्ष लोकेश भटनागर, जिला सचिव विकास निगम, संभागीय अध्यक्ष सुरेश कानूनगो, महिला प्रकोष्ठ की प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. अर्चना श्रीवास्तव, सुभाष के.पी. श्रीवास्तव, रेखा श्रीवास्तव, प्रीतम सक्सेना, मंजुला श्रीवास्तव, शिवानी निगम, कुलदीप राय कानूनगो, नागेन्द्र कानूनगो, आदित्य श्रीवास्तव सहित प्रदेश एवं जिला स्तर के पदाधिकारी उपस्थित थे। राष्ट्रीय अध्यक्ष सहाय ने सभी पदाधिकारियों से संगठन की गतिविधियों की जानकारी प्राप्त की और कहा कि भले ही समाज के लोग अलग-अलग नामों से अपने संगठन चला रहे हों, हमें उनसे प्रतिस्पर्धा करने की जगह समाज के हित में उनसे सहयोग की भावना रखना चाहिए। कायस्थ समाज लेने वाला नहीं, देने वाला समाज है। हम किसी से मांगते नहीं, बल्कि देते ही हैं। इसी कारण से हम हमेशा घाटे में रहते हैं, लेकिन हमे खुशी है कि हम अपने समाज बंधुओं के हित में अधिकतम सेवा कार्य कर रहे हैं। अब वक्त आ गया है, जब हमें सबको साथ लेकर चलना होगा और इस बात का ध्यान रखना होगा, कि कोई भी हमसे रूठे नहीं और कोई भी हमसे छूटे नहीं। समाजसेवा के क्षेत्र में इस मूल मंत्र को अपनाने की जरूरत है। हमें महासभा को एक अम्ब्रेला अर्थात छाते की तरह उपयोग करते आना चाहिए। एक छाते के नीचे जब तक सभी संगठन नहीं आएंगे, समाज का विकास रफ्तार नहीं ले पाएगा।
:: देश में चार करोड़ से अधिक मामले अदालतों में लंबित : जस्टिस दीपक वर्मा
कार्यक्रम के दूसरे चरण में देश के विधि वेत्ताओं के सम्मेलन में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रहे जस्टिस दीपक वर्मा ने न्यायालयों में बढ़ते लंबित प्रकरणों के बारे में अनेक सुझाव दिए। उन्होंने बताया कि जब तक सीआरपीसी और अन्य कानूनों में संशोधन नहीं होता, लंबित प्रकरणों के निपटारे में विलंब होता रहेगा। देश के न्यायालयों में लंबित प्रकरणों की संख्या 4 करोड़ तक पहुंच गई है, जबकि न्यायाधीशों की संख्या बहुत कम है। न्याय की एक प्रक्रिया होती है, जिसमें प्रकरणों की सुनवाई में विलंब होना स्वाभाविक है। एक सुझाव यह भी था कि किसी भी प्रकरण की सुनवाई लगातार पांच घंटे तक की जाए और अगली तारीख भले ही एक डेढ़ वर्ष बाद की दी जाए। दूसरा सुझाव यह था कि न्यायालयों में सुबह 10 से 5 बजे तक एक पारी में और दूसरी पारी में शाम 6 से रात 9 बजे तक प्रकरण सुने जाएं, लेकिन दोनों ही सुझावों को व्यवहारिक नहीं माना गया इसी कारण लंबित प्रकरणों की संख्या करोंड़ों में पहुंच गई है। इसके लिए न्यायाधीश और वकीलों के बीच समन्वय होना चाहिए, ताकि पीड़ित लोगों को जल्द से जल्द न्याय मिल सके। न्यायमूर्ति दीपक वर्मा ने उनके कार्यकाल के अनक प्रेरक अनुभव भी बताए और कहा कि न्यायाधीशों और वकीलों के रिश्ते पहले काफी सुलझे हुए होते थे। उन्होंने समाज के न्यायिक सेवा से जुड़े न्यायाधीशों एवं वकीलों से आग्रह किया कि वे लोगों को जल्द से जल्द न्याय दिलाने के लिए अपने स्तर पर भी प्रयास करें।