चौकीदार

दोस्त बाएं हाथ में

खंजर लिए है जानते हैं हम

शकुनी अमर धोका अमर है

जानते हैं हम

पर ऐसा नहीं  

अमृत पिलाते पिलाते खुद

सोमरस पीने लगे है हम |

ऐसा भी नहीं है कि

शमी  के वृक्ष पर

सारे शस्त्र रख कर

थूक हमने दिऐ  हों

शौर्य और साहस      

मौत बनकर टूट पड़ने की प्रथा |

ऐसा नहीं कि बाज

अहिंसक होगया है अब   

पर्वत ने टूट कर मौत

बरसाना अभी छोड़ा नहीं |

ऐसा भी नहीं कि परिवार  

डाल देगा बेड़ियाँ उसके

चन्दन अक्षत दीप से

फूल हारों से सजी थाली 

वीर कों ऐसी बिदाई 

मिलेगी घर से |

घुटने टेक देना

खून में उसके नहीं है |

घूँट ज़िल्लत का

वह पी नहीं सकता |

धोका रोज़ खाता रहा है

विश्वास का दामन मगर  

छोड़ा नहीं उसने अभी तक |

दूर दूर तक जिसकी

जड़ें फ़ैली हुई थीं संकुचित

होता गया गलत विश्वास के कारण |।

श्री शिवनारायण जौहरी विमल

 सेवानिवृत प्रमुख विधि सचिव न्यायधीश स्वतंत्रता सेनानी।

भोपाल मध्यप्रदेश