लोग चुप हैं 

लोग चुप हैं

वे सिर्फ देखना और सुनना चाहते हैं

नहीं वे बोलना भी चाहते हैं

लेकिन किससे, कौन सुनेगा

फिर भी वे चुप नहीं रहते

बोलते हैं खुद से

वे भीतर से उबल रहें हैं

एक सुसुप्त ज्वालामुखी के माफिक

जुबां पर आकर अटक जाते हैं

क्योंकि

अब बोलने के लिए भीड़ चाहिए

भीड़ने के लिए तागत चाहिए

झूठ ही सही तालियां चाहिए 

बोलने के लिए

सत्ता और शासन चाहिए

शायद !

इसलिए वे चुप हैं 

प्रभुनाथ शुक्ल

(बरिष्ठ पत्रकार, लेखक और समीक्षक)

जिला : भदोही, (उप्र)

पिन : 221404