जब-जब भी दिखा गाढ़ा अंधेरा कहीं
मैनें रोशनी सा झिलमिलाने बात की !!
यहां, जब भी चलन था आगे बढने का
मैंने बीते पलों को संजोने की बात की !!
आता है तुम्हें दुनिया को जीने का हुनर
पर मैनें खुद को जिए जाने की बात की !!
जहां उलझनों में उलझना ही सबब था
मैंने आभावों में भी उड़ने की बात की !!
तुम तो खो ही गये थे इस सफर में कहीं
मैंने अंत तक तुमको तलाशने की बात की !!
जहां शोर था मिलने और बिछड़ने का ही
मैंने मौन में ही अपने, मिलने की बात की!!
चाहे कोई जवाब आए या न आए तुम्हारा
फिर भी रोज खत लिखने की बात की !!
और..
जीते रहे समझौतों को सौगात समझकर
मैनें बिना शर्त प्रेम किए जाने की बात की !!
नमिता गुप्ता “मनसी”
उत्तर प्रदेश, मेरठ