अलख जगाया करती है,,,,

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जिस रचना के शब्द शब्द में,मातृभूमि का वन्दन हो ।

जिस रचना में भारत माँ के,बेटों का अभिनन्दन हो ।।

जिस रचना के अभय गान से,अमर तिरंगा झूम उठे ।

जिस रचना को सुनकर सैनिक,मातृ भूमि को चूम उठे ।।

जिस रचना में बलिदानों की,परम्परा का गायन हो ।

जिस रचना का मूल मंत्र ही,राष्ट्र धर्म पारायण हो ।।

जिस रचना को सुनकर यौवन,होड़ लगा दे मरनें की ।

राष्ट्र भक्ति की बलि बेदी पर,चढ़ प्राणाहुति करनें की ।।

जिस रचना में देश प्रेम का,ज्वालामुखी दहकता हो ।

जिस रचना की राष्ट्र गन्ध से,सारा राष्ट्र महकता हो ।।

शंखनाद कर भारत माँ का,गान सुनाया करती है ।।(1)

युगों युगों तक ऐसी रचना,अलख जगाया करती है ।।

जिस रचना को सुनते ही,भुजदण्ड फड़कने लग जाते ।

जिस रचना के सिंहनाद से,वक्ष धड़कने लग जाते ।।

जिस रचना के शौर्य गान से,जागे जोश युवाओं में ।

जिस रचना के शब्द ताप से,उबले रक्त शिराओं में ।।

जिस रचना को सुनकर अबला,समर भवानी बन जाए ।

जिस रचना को सुनकर योद्धा,महाकाल सा तन जाए ।।

जिस रचना की हुंकारों से,राष्ट्र समूचा जाग उठे ।

जिस रचना की रणभेरी सुन,बैरी रण से भाग उठे ।।

जिस रचना को सुनकर अरिदल,थर थर थर थर डोल उठे ।

जिस रचना को सुनकर अम्बर,हर हर हर हर बोल उठे ।।

बनकर वही राष्ट्र की प्रहरी,राष्ट्र बचाया करती है ।।(2)

युगों युगों तक ऐसी रचना,,,,,,

जिस रचना में जौहर वाली,अमर कहानी गूँज रही ।

जिस रचना में मीराबाई,गिरधारी को पूज रही ।।

जिस रचना में पन्ना माँ के,चन्दन का बलिदान मिले ।

जिस रचना में जैवन्ता का,जयकारी जयगान मिले ।।

जिस रचना में हल्दीघाटी,गाथा गाती वीरों की ।

जिस रचना में धार चमकती,केशरिया शमशीरों की ।।

जिस रचना में जयमल फत्ता,बैरी का बल तोल रहे ।

जिस रचना में गोरा बादल,बिना शीश के डोल रहे ।।

जिस रचना में गज मस्तक पर,चेतक चरण प्रहार मिले ।।

जिस रचना में महराणा की,मेवाड़ी ललकार मिले ।।

जो बनास की धारा का,इतिहास बताया करती है ।।(3)

युगों युगों तक ऐसी रचना,,,,,,

जिस रचना में जीजा माँ का,गर्वित ऊँचा भाल मिले ।

जिस रचना में भारत माँ का,वीर शिवाजी लाल मिले ।।

जिस रचना में छत्रसाल का,गौरव गान बखान मिले ।

जिस रचना में आल्हा ऊदल,और वीर मलखान मिले ।।

जिस रचना में तर्पण होता,आतंकी संतापों का ।

जिस रचना में मर्दन होता,जयचन्दों के पापों का ।।

जिस रचना में पृथ्वीराज के,बाणों की सन्नाहट हो ।

जिस रचना में शठ गोरी की,चीख और चिल्लाहट हो ।।

जिस रचना में भूषण का इतिहास दिखाई देता हो ।

शब्द शब्द बरदाई का विश्वास दिखाई देता हो ।।

नयन विहीन वीर को भी जो,लक्ष्य दिखाया करती है ।।(4)

युगों युगों तक ऐसी रचना,,,,,

जिस रचना में सावरकर के,राष्ट्रवाद का मंत्र मिले ।

जिस रचना में राजनीति का,कहीं नहीं षडयंत्र मिले ।।

जिस रचना में लाल बाल का,अडिग खड़ा विश्वास मिले ।

जिस रचना में गर्जन करता,नेता चन्द्र सुभाष मिले ।।

जिस रचना में मंगल पांडे,फाँसी को हो चूम रहा ।

जिस रचना में भगतसिंह गा,रंग बसंती झूम रहा ।।

जिस रचना में ऊधमसिंह हो,गोली का बल तोल रहा ।

जिस रचना में शेखर जी का,बारूद बुखारा बोल रहा ।।

जिस रचना में बिस्मिल का,जयघोष सुनाई देता हो ।।

जिस रचना में जलियांवाला,बाग दुहाई देता हो ।।

लहराते राष्ट्र तिरंगे का,मान बढाया करती है ।।(5)

युगों युगों तक ऐसी रचना,,,

जिस रचना को गाकर बहना,राखी बाँधे भाई को ।

जिस रचना को सुनकर भाई,चूमे सजी कलाई को ।।

जिस रचना को पिता पढ़े तो,दान पुत्र का कर डाले ।

जिस रचना को गुरू सुनाकर,शौर्य शिष्य में भर डाले ।।

जिस रचना को सुनकर बेटी,तड़ित बालिका बन जाए ।

खूब लड़ी मर्दानी वाला,इतिहास पुनः गढ़ जाए ।।

जिस रचना को सुनकर क्षत्रिय,गर्वित हो भाल उठा ले ।

जिस रचना को सुन क्षत्राणी,कर में करवाल उठा ले ।।

जिस रचना में इंकलाब की गूँज सुनाई देती हो ।

जिस रचना में भारत माँ की मूर्ति दिखाई देती हो ।।

मातृभूमि पर शीश चढ़ाकर,वह इतराया करती है ।।(6)

युगों युगों तक ऐसी रचना,,,

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डॉ. राज बुन्देली (मुम्बई)

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