बेटियों के पहरेदार

इस सत्ता के दरबारों में,

हर गलियाँ और चौवारों में

वो बेटी-बेटी चिखने वाले

कहाँ गुम हुए गलियारों में?

दिखता नही अब अत्याचार

कहाँ गुम हुए सब चौकीदार? 

अस्मत लूटने पर भी मौन है

कैसे बन गए है पहरेदार?

बेटी-बचाओं बेटी-पढ़ाओ का नारा

कहाँ गुम हुआ संगठन सारा?

मायावी-नरभक्षियों के मीठे बोल

शुष्क हुए सबका चढ़ता पारा।

मेडल पर ताली बजाने वाले

खड़े होकर सलामी देने वाले

अब भर-भरके सब कोस रहे हैं

पशु हत्या पर दंगा भड़काने वाले।

ढूँढ रहा हूँ सब संगठन वालों को

ऊँची स्वर में वचन गिनाने वालों को

अब मानवता शर्मशार नही होती

जनसभाओं में संबोधित करने वालो को।

ऐसे कृत्यों पर रक्त उबाल नही मारता। 

हर कार्य को जाति-पार्टी से ही ताड़ता। 

ऐसे जीवित जन मृत के समान है, 

जो भेदभाव से अन्याय को संवारता है।। 

चन्द्रकांत खुंटे ‘क्रांति’

जाँजगीर-चाम्पा (छत्तीसगढ़)