पुछती हे
यह वसुंधरा
हमसे
कहाँ हे
मेरी वह
चुनर धानी ?
वह जंगल ?
वह हरियाली ?
वह कल कल
बहता पानी ?
कहां हे वो मेरी
गोद मे खेलते
तरह तरह के
रंग बिरंगे प्राणी ?
ओ मेरी श्रेष्ठ संतान
कहा हे वह मेरा श्रृंगार ?
कहते हे जिसे पर्यावरण
जंगल को तुने काटा
नदियों को तुने बांधा
भेट चढ़ा प्रदूषण के
वह बहता उन्मूकुत पवन
कर दिए खजाने खाली
रित गये वो सब कलश
जिनमें सहेजा था
अमृत सहस्राब्दीयो से
आसीमित सहनशीलता
मेरी ,क्योंकि
मे स्त्री हु ना
शिकवो के बिना
तेरे अत्याचार
मुझे हे सहना ।
लेकिन माॅ के नाते
कितना दूभर होगा
कैसे देख पाउंगी
अपनी श्रेष्ठ संतान का
पराभव की और बढना ।
विमलेश पगारिया
बदनावर ( धार)