ज़ुबां से नहीं आंखों से कह गया कोई ,

ज़ख्मे दिल मुझको ये दे गया कोई ,

दिल से न जाने क्या कह गया कोई, 

आंखों से आंखों की बात हो गई, 

आंखों से दिल में उतर गया कोई, 

नक्श ए पा तेरे  कहां तलाश करुं, 

राहे गुबार आँखों को दे गया कोई, 

मुझेअब भी नाज़ है तेरे वादों पर, 

एतबार एसा फिर दिला गया कोई, 

तन्हा कैसे कटेगा ज़िंदगी का सफ़र,

मझधार में ही किनारा कर गया कोई, 

हां मेरे दोस्तों हां मेैं बिल्कुल नशे में हुं, 

आंखों अपनी मुझे  पिला गया कोई, 

वक़्ते रुख़सत,बड़ा बैचेन  लगता था ,

ज़ुबां से नहीं आंखों से कह गया कोई ,

शहर में मुसलसल ख़ामोशी तारी है, 

होने वाला है यहाँ पर हादसा कोई,  

मेरी तरफ़ वो बढ़ रहा था महफ़िल में, 

क़रीब था , मुझतक न आ सका कोई, 

तबस्सुम का मुश्ताक़ एसा हुआ असर, 

सारी रात फि़र जागता ही रह गया कोई, 

डॉ . मुश्ताक अहमद शाह ‘ सहज़ ‘ 

मगरधा  मध्य प्रदेश