अहिल्या के अनुत्तरित प्रश्न

हे राम ! बताओ मुझको…..

सदियों  तक  मैं  क्यों  पाषाण  रही ?

था कैसा पाप?जिससे मैं अनजान रही?

सप्त अर्णव का  सारा ये  जल खारा ।

इन  विकल चक्षुओं के  हैं अश्रु धारा ?

टकराना  इन  लहरों  का तट से देखो

तब से है, जब था  झूठ से सच  हारा?

हे राम ! बताओ मुझको…..

पतिव्रता होने पर भी मैं क्यो बदनाम रही?

था  कैसा पाप? जिससे मैं अनजान रही?

है खंडित विश्वास ,धूमिल रूप श्रृंगार हुआ

सुखमय जीवन  क्यो जलता अंगार हुआ ?

तेरे चरण रज भी हाय! कितने बहुमूल्य हुए

युग युग तरसी एक शीला तब उद्धार हुआ।

हे राम ! बताओ मुझको…..

 जिंदगी मेरी मरुभूमि सी क्यों वीरान रही?

 था  कैसा पाप?  जिससे मैं अनजान रही?

पति-पत्नी कैसे थे, जब था विश्वास नहीं

बिन जाने बुझे यूं तो देता कोई शाप नहीं

इंद्र, चंद्र को श्राप मिला भी तो कम ही है

अहिल्या के दुर्दिन का तुम्हें आभास नही

हे राम ! बताओ मुझको….

मैं निर्दोष, क्यों ना पति का अभिमान रही?

 था  कैसा पाप?  जिससे मैं अनजान रही?

दीपप्रिया मिश्रा

रांची झारखंड