ग़ज़ल 

मत कहो कुछ रोज़ का मेहमान है 

इस धरा पर आदमी की शान है

आदमीं दिखता नही है  आजकल।

क्या ख़ुदा बनना बहुत आसान है।

ग़ैर के गम से यूँ आँखे नम हुई।  

लग रहा है आप भी इन्सान है।

मंदिरों की सीढ़ियाँ मै क्यूँ चढूँ।

 मेरे तो माँ बाप ही भगवान है।

शातिरो के साथ रहकर भी यहाँ 

अब तलक यूँ आप क्यूँ नादान है

है सियासी आजकल आबो हवा।

बच के रहना भी नही आसान है।

यूँ तो पत्थर से ज़ियादा कुछ नही। 

फिर भी ‘रूबी’ प्रेम की पहचान है।

रूबी गुप्ता दुदही 

कुशीनगर उत्तर प्रदेश भारत