स्टीयरिंग कमिटी के अध्यक्ष लीपापोती में जुटे
भोपाल । कूनो नेशनल पार्क चीतों के लिए कब्रिस्तान बनता जा रहा है। बुधवार को एक और फीमेल चीता संदिग्ध मौत हो गई है। मौत के कारणों को छुपाने की प्रक्रिया तेज हो गई है। इसके पीछे वजह बताई जा रही है कि स्टीयरिंग कमेटी के अध्यक्ष राजेश गोपाल और एनटीसीए के सदस्य सचिव एसपी यादव अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए पोस्टमार्टम की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं करने के निर्देश दिए हैं।
पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ असीम श्रीवास्तव ने बुधवार को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर टिबलिसी (धात्री) की मौत की पुष्टि की है। श्रीवास्तव ने बताया कि बाहर विचरण कर रहे दोनों मादा चीता की नामीबियाई विशेषज्ञॉ, कूनो के वन्य प्राणी चिकित्सक एवं प्रबंधन टीम द्वारा लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है। इनमें से टिबलिसी (भारतीय नाम धात्री) बुधवार को मृत पाई गई। श्रीवास्तव ने जारी विज्ञप्ति में कहा है कि मृत्यु के कारणों का पता नहीं लगा है। पोस्टमार्टम के बाद ही मृत्यु के कारणों का पता चल सकेगा। हालांकि अभी तक जितनी भी चीता की मौत हुई है, किसी एक का भी पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं किया गया है। मौत के कारणों की लीपापोती हो रही है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में को भी गुमराह किया जा रहा है।
-7 दिन से लापता है निरवा
कूनो की एक और फीमेल चीता निरवा 7 दिन से लापता है। पार्क प्रबंधन अभी तक उसकी सुराग नहीं लगा पाया है। पार्क प्रबंधन के द्वारा यह तर्क दिया जा रहा है कि उसके पद मार्क दिखाई दे रहे हैं। जबकि निरवा की निगरानी में जुटे कर्मचारी अब दबी भी जुबां कहने लगे हैं कि निरवा का कोई अता-पता नहीं है। पगमार्क दिखाई देने का दावा करना बेमानी है और गुमराह करना है।
-पटरी से उतरने लगी है चीता परियोजना
भारत की चीता परियोजना पटरी से उतर गई है, क्योंकि इसे एक अभूतपूर्व संकट का सामना करना पड़ रहा है। इसका अनुमान चीता प्रबंधकों को भी नहीं था। हालाँकि गोपनीयता में लिपटी इस परियोजना में चीते की उच्च मृत्यु दर की कल्पना की गई थी, लेकिन मौतों के वर्तमान कारण का चीता कार्य योजना में कोई उल्लेख नहीं किया गया। ठीक वैसे ही जैसे राजनीति, नौकरशाही बाधाएं और लालफीताशाही सहित अन्य मुद्दे वर्तमान दुर्दशा के लिए जिम्मेदार हैं। वर्तमान में चीता प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी अफसरों के हाथों में है उनमें से किसी का भी चीता मैनेजमेंट से कोई संबंध नहीं रहा है। सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट रूप से चीता प्रोजेक्ट से जुड़े अफसरों की फटकार लगा चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया था कि अधिकारी अपने ईगो को छोड़कर चीता को बचाने के विकल्पों पर काम करना चाहिए। चीता प्रोजेक्ट में शिफ्ट करने के विकल्प भी दिए गए हैं किंतु राजनीतिक प्रतिद्वंदिता की वजह से उन पर विचार नहीं किया जा रहा है।