समर्थन का स्वर
इतना लुभाया
कि विरोध की उसांस भी
भारी लगने लगी
तालियां सुनते देखते
मुखौटे को
गालियों की आवाज
असहनीय होने लगी
कुछ शब्दों के आदी कान
उन शब्दों के अलावा
हर शब्द को निरस्त कर दिए
और उन शब्दों को
कारावास में भर दिए
फिर भी दूर दराज से उठते
विरोधी स्वर भरे तूफानों को
कहां तक रोक सकेंगे दो हाथ
कहां कैद होंगी हवाएं
जो चारों तरफ से घेरी हैं
जहां फूल झड़ रहे हैं
वहां पत्थर भी पड़ेंगे
गले कितने खामोश होंगे
विरोधी स्वर तो आता ही रहेगा
किसी न किसी भेष में
स्वर संवर रहे हैं
असहनीय परिवेश में
डॉ टी महादेव राव
विशाखपट्नम आंध्र प्रदेश
9394290204