आज मालवांचल में बसे हजारो पूर्वांचल के लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगे –

:: खरना के साथ शुरू हुआ छठ व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास ::
इन्दौर । छठ महापर्व के तीसरे दिन आज रविवार को शहर एवं इसके आसपास क्षेत्रों – महू, राउ, पीथमपुर, देवास, उज्जैन में बसे पूर्वांचल के हज़ारों छठ व्रतधारी शहर के विभिन्न तालाबों, प्राकृतिक जलाशयों, कृत्रिम जलकुण्डों में खड़े होकर गोधूलि बेला में अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगे। पूर्वोत्तर सांस्कृतिक संस्थान जो पूर्वोत्तर समाज के लोगों की शहर में सबसे बड़ी संस्था है, के अनुसार, शहर में इस वर्ष लगभग 125 जगहों, विशेषरूप से विजय नगर, बाणगंगा, स्कीम न 78, तुलसी नगर, समर पार्क निपानिया, पिपलियाहना तालाब, सिलिकॉन सिटी, शंखेश्वर सिटी, वेंकटेश नगर,श्याम नगर एनेक्स, एरोड्रम रोड, अन्नपूर्णा तालाब, सूर्य मंदिर कैट रोड सुखलिया, शिप्रा, देवास नाका इत्यादि जगहों पर पर सार्वजनिक छठ महापर्व मनाया जा रहा है जहाँ छठ व्रती सार्वजनिक जलाशयों तथा कृत्रिम जलकुण्डों में खड़े होकर सूर्यदेव को अपने संतानों, परिवारों, समाज तथा शहर एवं प्रदेशवासियों के अच्छे स्वास्थ्य,सुख समृद्धि एवं दीर्घायु होने की छठि मैया से कामना करेंगे।
:: रविवार सायंकाल 5 बजकर 42 मिनट पर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा ::
पूर्वोत्तर सांस्कृतिक संस्थान के अध्यक्ष ठाकुर जगदीश सिंह, महासचिव के.के. झा ने बताया कि आज सुबह से ही शहर के समस्त पूर्वांचल परिवारों में, खासकर छठ व्रतियों के घरों में उत्सव एवं उल्लास का माहौल था। जहाँ परिवार की महिलाऐं अपने अपने घरों की साफ़ सफाई कर खरना का प्रसाद बनाने में व्यस्त थी, वहीं दूसरी तरफ घर के पुरुष छठ पूजा एवं पूजा में उपयोग होने वाले फलों की खरीदारियों में व्यस्त रहे। प्रसाद के रूप में महिलाओं ने गुर एवं गेहूं, घी मिश्रित ठेकुआ के अलावा चावल के भुसवा, इत्यादि का प्रसाद मिट्टी के बने चूल्हे पर बनाया।
छठ महापर्व के दूसरे दिन शनिवार को छठ व्रतियों के घरों में खरना का आयोजन हुआ। दिन भर व्रत रखने के पश्चात व्रतियों ने शाम को गंगाजल मिश्रित जल से स्नान करने के पश्चात भगवान सूर्य का ध्यान कर छठ मईया का पूर्ण विधि विधान से पूजा किया। उसके बाद मिट्टी के बने चूल्हे पर पूर्ण स्वछता एवं पवित्रता के साथ अरवा चावल, दूध व गुड़ की खीर और गेहूं की रोटी का प्रसाद बनाकर कर भगवान सूर्य और छठ मईया को समर्पित करने के पश्चात, उसे ग्रहण किया। इसके साथ ही व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो गया। व्रती अपने निर्जला उपवास का पारण सोमवार 20 नवंबर को सुबह 6 बजकर 42 मिनट पर उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के पश्चात करेंगे।