सुखी या दुखी होने के असली कारण हमारे स्वयंकर्म है बाहरी शक्तियां तो निमित्त मात्र है- मुनि श्री निर्वग सागर महाराज

भोपाल । टी टी नगर जैन मंदिर में मुनि प्रमाण सागर महाराज के सत्संग सानिध्य में श्रद्धालु पूजा अर्चना में लीन है। प्रतिदिन मुनि श्री के दर्शन करने अनेक श्रद्धालु आ रहे हैं। संध्याकालीन शंकर समाधान में समाज के लोग अपनी शंकाओं का समाधान कर रहे हैं। धर्म सभा में आज मुनि श्री निर्वग सागर महाराज ने कहा स्वाध्याय (आत्म-अध्ययन) करने से न केवल ज्ञान बढ़ता है बल्कि मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।
स्वाध्याय करने से हमें आत्मा और शरीर के भेद का ज्ञान होता है। जब व्यक्ति यह समझ लेता है कि वह शरीर नहीं, बल्कि आत्मा है, तो वह सांसारिक मोह से मुक्त होने की ओर बढ़ता है। जैन दर्शन के अनुसार, हर व्यक्ति में परमात्मा बनने की क्षमता है। भगवान महावीर भी एक समय में साधारण जीव थे, लेकिन सही मार्ग अपनाने से तीर्थंकर बने। इसी प्रकार, यदि हम श्रद्धा और पुरुषार्थ करें, तो हम भी आत्मा की शुद्ध अवस्था प्राप्त कर सकते हैं। मुनि श्री ने कहा हम अपने कर्मों के आधार पर अपने सुख और दुख के स्वयं कर्ता है बाहरी शक्तियां तो निमित्त मात्र होती है
हमारे जीवन में आने वाले कष्ट और सुख हमारे ही पूर्व कर्मों के परिणाम हैं। जब कोई दुख या कठिनाई आती है, तो हमें यह सोचना चाहिए कि यह हमारे कर्मों का फल है, न कि किसी और की गलती। अगर हम इस बात को समझ लें कि हर चीज नश्वर (क्षणभंगुर) है, तो हम सुख-दुख में समान रह सकते हैं।
यह भी समझाया गया है कि बाहरी परिस्थितियाँ (निमित्त) केवल माध्यम होती हैं, लेकिन असली कारण हमारे अपने कर्म होते हैं। उदाहरण के लिए, कोरोना काल में कुछ लोग संक्रमित हुए और कुछ नहीं, यह उनकी स्वयं की प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) पर निर्भर था। इसी तरह, गुस्सा भी हमारी आंतरिक कमजोरी के कारण आता है, न कि किसी बाहरी व्यक्ति की वजह से।
मुनि श्री ने समझाया कि जब हमें कोई दुख मिले, तो उसे स्वीकार कर शांतिपूर्वक सहन करें, जिससे नए कर्मों का बंधन नहीं होगा। जो लोग शरीर को ही सबकुछ मानते हैं, वे बाहरी आत्मा (बहिरात्मा) हैं और वे दुखों से अधिक प्रभावित होते हैं। जबकि जो आत्मा और शरीर को अलग मानते हैं, वे अंतरात्मा कहलाते हैं, और वे सच्चे मोक्षमार्ग की ओर बढ़ते हैं।
अंत में, शास्त्रों का अध्ययन करने और आत्मबोध की साधना करने पर जोर दिया गया है। विशेष रूप से, तत्वार्थ सूत्र, षट्खंडागम, और पद्मपुराण जैसे ग्रंथों को पढ़ने की सलाह दी गई है, ताकि हम जीवन के सत्य को समझ सकें और आत्मिक शांति प्राप्त कर सकें।
प्रवक्ता सुनील जैनाविन ने बताया धर्म सभा का शुभारंभ आचार्य विद्यासागर महाराज, आचार्य समय सागर महाराज के चित्र के साथ हुआ। सांय कालीन सत्र में मुनि संघ द्वारा सामयिक साधना की गई और शंका समाधान के माध्यम से मुनि श्री प्रमाण सागर महाराज ने श्रद्धालुओं की शंका का समाधान किया। इस अवसर पर पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी, मंदिर समिति के अध्यक्ष अमर जैन एडवोकेट,
विनीत गोधा , महेश बारी, दिनेश गोयल इंजीनियर, दिनकर जैन के के जैन, अर्पित जैन सहित अनेक लोगों ने श्रीफल समर्पित कर आशीर्वाद लिया।