उच्च न्यायालय का निर्णय जैन वैवाहिक विवादों के फैसले हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत, समाजजनों ने जाहिर की खुशी

इन्दौर जैन समाज के वैवाहिक विवादों पर कुटुंब न्यायालय द्वारा दिए गए विवादित आदेश जिसमें कहा गया था कि जैन समाज पर हिंदू विवाह अधिनियम लागू नहीं होता। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की युगल पीठ ने इस आदेश को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर स्पष्ट किया कि देश के संसद ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अंतर्गत जैन समाज को उक्त अधिनियम के अधीन हिंदुओं के समकक्ष ही माना था। अतः जैन समुदाय के व्यक्तियों के विवाह संबंधी मामलों में हिंदू विवाह अधिनियम 1955 ही प्रभावशाली कानून होगा । हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख समुदायों को हिंदू विवाह अधिनियम में सम्मिलित किया गया था। विश्व जैन संगठन एवं जिन शासन एकता संघ के प्रचारक राजेश जैन दद्दू एवं मयंक जैन ने उच्च न्यायालय के इस निर्णय का स्वागत करते कहा कि जैन दशकों से समाज के वैवाहिक मामलों में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ही निर्णय करते रहे हैं। विवाह विच्छेद से संबंधित मामलों में जैन दंपतियों पर हिंदू विवाह अधिनियम लागू न होने का कुटुंब न्यायालय का फैसला न केवल समाज को असमंजस में डालने वाला था, बल्कि यह एक स्थापित विधिक प्रक्रिया के विपरीत भी था। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय का यह फैसला न केवल संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करता है, बल्कि जैन समाज के हितों की भी रक्षा करता है। राजेश जैन दद्दू ने बताया कि उच्च न्यायालय के इस फैसले को जैन समाज के वरिष्ठ समाजसेवी डॉ जैनेन्द्र जैन, महावीर ट्रस्ट के अध्यक्ष अमित कासलीवाल फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवेन्द्र कांसल, सुशील पांड्या, हंसमुख गांधी, टीके वेद, एवं फेडरेशन की राष्ट्रीय शिरोमणि संरक्षिका पुष्पा कासलीवाल, परवार समाज महिला संगठन की अध्यक्ष श्रीमती मुक्ता जैन आदि ने स्वागत योग्य बताते न्यायालय के इस निर्णय पर खुशी जाहिर की है।