विजय शाह के मामले में अपनी फजीहत कराने के बाद भी उन पर एक्शन लेने से क्यों पीछे हट रही बीजेपी

नई दिल्ली । मध्य प्रदेश की मोहन सरकार के मंत्री विजय शाह राजनीतिक गलियारों में घिरे ही हैं, लेकिन अब कानूनी पचड़े में भी फंस गए हैं। कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर बयान पर हाईकोर्ट के निर्देश के बाद मुकदमा दर्ज हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें फटकार लगाकर कह दिया है कि मंत्री होकर ऐसी भाषा। विपक्षी कांग्रेस पार्टी इस्तीफे की मांग को लेकर राज्यपाल के पास पहुंच चुकी है। वहीं, पाकिस्तानी मीडिया भी मौके का फायदा उठाकर उनके बयान का इस्तेमाल दुनिया में यह प्रोपेडैंडा फैलाने के लिए कर रहा है कि भारत में अल्पसंख्यकों को मुख्य धारा से दूर धकेला जा रहा है।
चौतरफा घिरे मंत्री शाह ने विवाद बढ़ने के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के मध्य प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से मुलाकात के बाद माफी भी मांग ली, लेकिन हंसते हुए। सवाल उठ रहे हैं कि बीजेपी शाह पर एक्शन से क्यों हिचक रही है?
दरअसल शाह लगातार आठ बार के विधायक हैं। आदिवासी समाज से आने वाले शाह अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हरसूद सीट से 2018 में भी चुनकर आए थे, जब एसटी सीटों पर बीजेपी का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा था। खंडवा के जंगली इलाके से सत्ता के गलियारों में मंत्री पद तक पहुंचे शाह सूबे में बीजेपी के सत्ता में आने के भी पहले से विधायक हैं। आदिवासी समाज के बीच बीजेपी की सियासी जमीन मजबूत करने का क्रेडिट शाह को दिया जाता है।
मध्य प्रदेश के कुल मतदाताओं में से करीब 22 फीसदी भागीदारी आदिवासी वोटरों की हैं। आदिवासी समाज के लिए आरक्षित सीटों में 47 सीटें एसटी आरक्षित हैं। 230 सदस्यों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा की करीब 90 सीटें ऐसी हैं, जहां जीत-हार तय करने में आदिवासी मतदाता महत्वपूर्ण होते हैं। बताया जाता हैं कि मध्य प्रदेश की सत्ता की तस्वीर आदिवासी मतदाताओं के रुख पर निर्भर करती है और यह पिछले दो विधानसभा चुनावों के नतीजों से भी साबित होता है। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में 47 में 31 एसटी सीटें जीतने वाली बीजेपी लगातार तीसरी बार सत्ता में आई। बीजेपी नहीं चाहेगी कि विजय शाह जैसे बड़े आदिवासी नेता पर एक्शन से आदिवासी समाज के बीच कोई गलत संदेश जाए और पार्टी को नुकसान हो। एमपी बीजेपी की हाल में हुई बैठक में भी वरिष्ठ नेताओं ने यही चिंता व्यक्त की।
शाह के बयान से बीजेपी नेतृत्व नाराज है। मुख्यमंत्री मोहन यादव से लेकर प्रदेश अध्यक्ष शर्मा तक उन्हें तलब कर चुके हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा उनकी रिपोर्ट तलब कर चुके हैं। बीजेपी नेताओं की टीम कर्नल सोफिया के घर पहुंच परिजनों से मिलकर भी आ गई। डैमेज कंट्रोल के लिए बीजेपी की तरफ से तमाम कवायदें हुईं, नहीं हुआ तब बस एक्शन। बीजेपी की राजनैतिक लाइन से जोड़कर भी देखा जा रहा है। शाह की भाषा भले ही ठीक नहीं, लेकिन उनका टार्गेट हार्डकोर हिंदू वोटर ही था। वहीं बीजेपी विजय शाह पर एक्शन से इसलिए भी हिचक रही है, क्योंकि पार्टी नेताओं को लगाता हैं कि ऐसा होने पर विपक्ष अपनी जीत के तौर पर प्रचारित करेगा। रिपोर्ट के मुताबिक इस मुद्दे पर एक उच्च स्तरीय बैठक हुई थी, जिसमें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शर्मा, मुख्यमंत्री यादव, संगठन महासचिव हितानंद शर्मा और अन्य वरिष्ठ नेता मौजूद थे। इस बैठक में वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस्तीफे को लेकर कुछ नहीं कहा है, इसलिए इस पर जोर देने की जरूरत नहीं है।