स्वयं भगवान भी पहुंच जाते हैं निष्कपट और निष्काम भक्त के मान-सम्मान की रक्षा करने –

:: अंबिकापुरी स्थित खाटू श्याम धाम पर चल रहे वार्षिकोत्सव में नानीबाई के मायरे की कथा में कहा सुश्री मुस्कान शर्मा ने ::
इन्दौर। निष्कपट और निष्काम भक्ति जहां भी होती है, भगवान स्वयं वहां पहुंच कर अपने भक्त की मान-मर्यादा की रक्षा अवश्य करते हैं। नानीबाई के मायरे की कथा भक्त के प्रति भगवान की करूणा,कृपा और स्नेह की पराकाष्ठा का ज्वलंत उदाहरण है,जो हमारी संस्कृति और परंपरा का स्वर्णिम अध्याय है। मायरे की यह कथा संसार के अनेक रिश्तों को विभिन्न स्वरूपों में व्यक्त करती हैं।
ये प्रेरक विचार हैं श्यामप्रिया सुश्री मुस्कान शर्मा के, जो उन्होंने मंगलवार को एयरपोर्ट रोड, अंबिकापुरी स्थित श्री खाटू श्याम धाम के 28वें वार्षिकोत्सव में चल रही नानी बाई के मायरे की कथा में उपस्थित भक्तों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। कथा का शुभारंभ महामंडलेश्वर स्वामी गोपालदास महाराज के सानिध्य में समाजसेवी महेश बालीच, गणेश शर्मा, पवन शर्मा, मलखानसिंह चावड़ा, मनीष जैन, श्याम सुंदर सोनी द्वारा व्यासपीठ पूजन के साथ हुआ। महामंडलेश्वर जयेश दास, महामंडलेश्वर ललितादास एवं महामंडलेश्वर मीरा दास ने भी आज मायरे की कथा का श्रवण लाभ उठाया। महिला समिति की ओर से श्रीमती संध्या गुप्ता, शालिनी जैन, प्रेमलता सेन, लक्ष्मी शर्मा एवं मालती जायसवाल ने सभी संतों की अगवानी की। इसके पूर्व सुबह 9 से 11.30 बजे तक आश्रम स्थित यज्ञशाला में खाटू श्याम महायज्ञ का आयोजन भी हुआ, जिसमें आचार्य मुकेश उपाध्याय के निर्देशन में राजकिशोर शर्मा, अशोक शर्मा, उमेश अग्रवाल ने सपत्नीक आहुतियां समर्पित की। महामंडलेश्वर गोपालदास महाराज प्रतिदिन यजमानों को विश्व शांति एवं पर्यावरण संरक्षण की शपथ दिला रहे हैं। आश्रम समिति की ओर से दीपक शर्मा, विनोद विश्वकर्मा, धीरेन्द्र जायसवाल, अनिल सोनी, महेश वर्मा सहित अन्य कार्यकर्ताओं ने मेहमानों और भक्तों का स्वागत किया। खाटू श्याम धाम अंबिकापुरी पर चल रहे इस महोत्सव में प्रतिदिन सुबह 9 से 11.30 बजे तक खाटू श्याम महायज्ञ एवं दोपहर 3 से 6 बजे तक संगीतमय मायरे की कथा के अनुष्ठान 6 जून तक चलेंगे। 7 जून को महोत्सव की पूर्णाहुति पर दिनभऱ अनुष्ठान होंगे।
सुश्री मुस्कान शर्मा ने कहा कि पिता और पुत्री, भक्त और भगवान तथा मायके और ससुराल के बीच रिश्तों के बनते-बिगडते सबंधो का प्रतिंबिंब हैं मायरे की कथा। भक्तों पर भगवान की कृपा किस तरह बरसती है और भगवान प्रसन्न होने पर भक्तों को कैसे निहाल करते हैं,यही सब है इस कथा में। भक्त नरसीं मेंहता पर भगवान शंकर और भगवान कृष्ण, दोनो की भक्ति का रंग चढा रहा। भक्ति में यदि स्वार्थ और कामना नहीं होगी तो भगवान कृपा करने में देर नहीं करते। नरसी मेहता की भक्ति इतनी गहरी थी कि उन्हे अपने घर- परिवार को संभालने का भी ध्यान नहीं रहता था। एक तरह से भगवान ने ही उनके घर-परिवार को संभाला और भक्त की प्रतिष्ठा की खातिर स्वयं को भी दाव पर लगा दिया। जिसका कोई नहीं होता, उसका भगवान होता हैं, यह कहावत इस कथा से पुष्ट होती है।