:: नरसिंह वाटिका में चल रहे चातुर्मासिक अनुष्ठान में आज से उत्तराध्ययन सूत्र पर आधारित प्रवचन, रविवार को ‘संबंधों की डोर’ ::
इंदौर । धन कमाने के लिए तो पूरे वर्षभर अवसर आते हैं, लेकिन चातुर्मास का अवसर धन नहीं, धर्म कमाने के लिए आया है। पानी का स्वभाव शीतलता, अग्नि का उष्णता और धर्म का स्वभाव गिरते हुए व्यक्ति को उठाने का है। जीवन जीने की स्वाभाविक प्रक्रिया का नाम है धर्म। सारे देश में चार माह तक भ्रमण कर साधकों को धर्म कमाने की प्रेरणा देने के लिए ही चातुर्मास जैसे आयोजन हो रहे हैं।
ये प्रेरक विचार हैं युवा हृदय सम्राट, आचार्य विश्वरत्न सागर म.सा. के, जो उन्होंने अर्बुद गिरिराज जैन श्वेताम्बर तपागच्छ उपाश्रय ट्रस्ट पीपली बाजार, जैन श्वेताम्बर मालवा महासंघ एवं नवरत्न परिवार इंदौर के तत्वावधान में शुक्रवार को एयरपोर्ट रोड स्थित नरसिंह वाटिका में चल रहे चातुर्मासिक अनुष्ठान की धर्मसभा में व्यक्त किए। प्रारंभ में आयोजन समिति की ओर से पुण्यपाल सुराना, कैलाश नाहर, ललित सी. जैन ने सभी श्रावकों की अगवानी की। मनीष सुराना, प्रीतेश ओस्तवाल, पारसमल बोहरा ने बताया कि धर्मसभा में प.पू. हेमेन्द्रश्री म.सा., प.पू. दमिताश्री म.सा., अमितगुणाश्री म.सा., निर्मलगुणाश्री म.सा., कल्पद्रुमाश्री म.सा., सिद्धांतज्योतिश्री म.सा., शुद्धिप्रसन्नाश्री म.सा., पूर्णायशाश्री म.सा. सहित शहर में विराजित साधु साध्वी भगवंतों ने भी सानिध्य प्रदान किया। कंचनबाग से पधारे मुनिप्रवर मोक्षरत्न सागर म.सा. भी मौजूद थे।
प.पू. जैनाचार्य ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने उत्तराध्ययन सूत्र में अनेक ऐसे सूत्र दिए हैं, जिनके माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन को सदगुणों से संवार सकता है। व्यक्ति को अधोगति से उर्ध्वगति की ओर ले जाने की व्यवस्था का नाम है धर्म। नरसिंह वाटिका में शनिवार से प्रतिदिन धर्म कमाने का सौभाग्य इंदौर के भक्तों को मिलता रहेगा। उत्तराध्ययन सूत्र एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान महावीर स्वामी ने अंतिम देशना दी है। मृत्यु के पूर्व वसीयत की तरह इस ग्रंथ को भी हम अपने जीवन के मार्गदर्शन का ग्रंथ मानते हैं।
धर्मसभा में गणिवर्य श्री कीर्तिरत्न म.सा. एवं उत्तम रत्न म.सा. ने भी संबोधित किया और चातुर्मास की महत्ता के साथ ही उत्तराध्ययन सूत्र, सिद्ध तप आराधना एवं चातुर्मास में होने वाले अन्य कार्यक्रमों का विवरण दिया। उत्तम रत्नसागर म.सा. ने कहा कि आज का व्यक्ति पेट भरने के लिए नहीं, पेटी भरने के लिए कमा रहा है। पेटी भी इतनी बड़ी है कि वह आगे चलकर खोखा बन जाती है। मनुष्य की इच्छाओं का कभी अंत नहीं होता। दुनिया में इच्छा नाम का कीड़ा लोगों में इस कदर घुसा हुआ है कि लाख प्रयासों के बाद भी खत्म नहीं होता। जीवन में सुखी होने का सबसे सरल सूत्र है संतोषी होना। संतोषी होने का मतलब यह है कि जो मिला, जैसा मिला, जहां मिला, जब मिला और मिला तो मिला और नहीं मिला तो नहीं मिला वाला भाव होना चाहिए। हमारी इच्छा ऐसी होना चाहिए कि हम भी भूखे न रहें और साधु या मेहमान भी भूखा न जाए। गणिवर्य कीर्तिरत्न सागर म.सा. ने श्रावकों से आग्रह किया कि वे चातुर्मास में सिद्धि तप आराधना का पुण्य लाभ अवश्य उठाएं।
नरसिंह वाटिका पर चातुर्मासिक धर्मसभा में प्रत्येक रविवार को प.पू विश्वरत्न सागर म.सा. के सानिध्य में विशेष शिविरों का आयोजन भी होगा। इनमें पहला शिविर रविवार, 13 जुलाई को सुबह नियमित धर्मसभा के पश्चात ‘ संबंधों की डोर’ विषय पर मार्गदर्शन होगा। संयुक्त परिवार में रहते हुए आपस में कैसे संबंध होना चाहिए और उनमें किस तरह सामंजस्य एवं माधुर्य स्थापित किया जाए, इन सभी घर-घर के विषयों पर जैनाचार्य प.पू. विश्वरत्न सागर म.सा. एवं उनके मार्गदर्शन में अन्य साधु साध्वी भगवंत मार्गदर्शन करेंगे। प्रवचन प्रतिदिन सुबह 9 बजे से प्रारंभ हो जाएंगे।