नई दिल्ली । भारत में प्राइवेट जेट का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। मार्च 2025 तक के आंकड़ों की मानें तो देश में हर महीने 2,400 से ज्यादा प्राइवेट उड़ानें हो रही हैं, जो पूरे एशिया में सबसे ज्यादा हैं। 2020 से 2024 के बीच भारत में रजिस्टर्ड प्राइवेट जेट्स की संख्या लगभग 25 प्रतिशत से बढ़कर 168 हो गई है, जबकि चीन में इसी अवधि में यह संख्या एक चौथाई घटकर 249 पर आ गई।
इस संबंध में एविएशन फाइनेंस विशेषज्ञ कहते हैं, कि अब प्राइवेट जेट सिर्फ बड़े उद्योगपतियों तक सीमित नहीं हैं। कंस्ट्रक्शन, ज्वेलरी, फार्मा और एजुकेशन सेक्टर से जुड़े कारोबारी, खासतौर पर टियर-2 और टियर-3 शहरों से, तेजी से खरीदारों की सूची में शामिल हो रहे हैं। ये वही लोग हैं, जिन्होंने पहले मेबैक और रोल्स रॉयस जैसी लग्जरी कारें खरीदी थीं।
चीन की तुलना में भारतीय खरीदार ज्यादा प्रैक्टिकल
विषय विशेषज्ञ कहते हैं कि चीन में प्राइवेट जेट खरीदना मुख्य रूप से ‘स्टेटस सिंबल’ है, जबकि भारत में खरीदार इसे व्यावहारिक जरूरत के रूप में देखते हैं। बेहतर हाई-स्पीड रेल और सड़क नेटवर्क की कमी के कारण छोटे शहरों व फैक्ट्री साइट्स तक जल्दी पहुंचने के लिए जेट एक महत्वपूर्ण साधन बन गया है।
डील में मोलभाव और टैक्स का असर
जानकारी अनुसार भारतीय खरीदार हर डील में 5,000 डॉलर तक मोलभाव करते हैं। प्राइवेट जेट की कीमत 26 करोड़ से लेकर 900 करोड़ रुपये तक होती है। इन पर 28 फीसदी टैक्स लगता है, जो चार्टर करने पर घटकर 5 फीसद हो जाता है। एक जेट की सालाना फिक्स्ड कॉस्ट 9 से 12 करोड़ रुपये होती है, जिसमें ईंधन, पार्किंग और लैंडिंग फीस शामिल नहीं होती है।
लग्जरी मार्केटिंग और इवेंट्स
प्राइवेट जेट के ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए कंपनियां पोलो मैच जैसे विशेष इवेंट्स आयोजित कर रही हैं। यह संकेत देता है कि भारत का प्राइवेट जेट बाजार अब केवल बड़े कॉर्पोरेट्स तक सीमित न रहकर, व्यापक अमीर तबके तक फैल चुका है।