शाह का आरोप ‘वोट बैंक’ को बचाने के लिए कानून निरस्त किया
नई दिल्ली । केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के दौरान कांग्रेस पार्टी की घेराबंदी की। केंद्रीय मंत्री शाह ने मनमोहन सरकार पर अपने ‘वोट बैंक’ को बचाने के लिए आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) को निरस्त करने का आरोप लगाया। शाह ने कहा, “2002 में अटल जी की एनडीए सरकार पोटा (आतंकवाद निरोधक अधिनियम, 2002) लेकर आई थी। तब पोटा पर किसने आपत्ति जाहिर की थी? कांग्रेस पार्टी ने। 2004 में सत्ता में आने के बाद मनमोहन सरकार ने पोटा कानून को रद्द किया। किसके फायदे के लिए कांग्रेस ने पोटा को रद्द किया?”
शाह के अनुसार कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में आतंकवादी हमलों में करीब 1000 लोग मारे गए। गृह मंत्री ने कहा, कांग्रेस आतंकवादियों की तस्वीरें पाकिस्तान भेजती रही। कांग्रेस ने दिल्ली के बटला हाउस में मारे गए आतंकवादियों के लिए आंसू बहाए, लेकिन आतंकवादियों द्वारा मारे गए पुलिसकर्मियों के लिए नहीं।
क्या था पोटा कानून ?
दरअसल आतंकवाद निरोधक अधिनियम, 2002 (पोटा) आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि के बाद आतंकवाद-रोधी अभियानों को मजबूत करने के लिए लागू किया गया था। इस अधिनियम को 28 मार्च 2002 को अधिसूचित किया गया था और सितंबर 2004 में निरस्त किया गया था।
इस कानून के तहत किसी संदिग्ध को विशेष अदालत द्वारा 180 दिनों तक हिरासत में रखा जा सकता था। आतंकवाद के लिए धन उगाहने को ‘आतंकवादी कृत्य’ के रूप में परिभाषित किया गया था। इसमें आतंकवादी संगठनों से निपटने के भी प्रावधान थे, जिससे केंद्र को उन्हें अपनी सूची में शामिल या हटाने की अनुमति मिलती थी। इसके कई प्रावधानों को 2004 में निरस्त होने के बाद गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) में संशोधनों में शामिल किया गया था।
पोटा को कथित दुरुपयोग और मानवाधिकार उल्लंघन की चिंताओं के कारण 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूएपीए) सरकार द्वारा निरस्त किया था। कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने कहा कि उन्हें चिंता है कि बीते दो वर्षों में पोटा का घोर दुरुपयोग हुआ है। गठबंधन ने कहा, “आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कोई समझौता नहीं किया जाएगा। लेकिन पोटा के दुरुपयोग को देखकर मनमोहन सरकार ने कानून को निरस्त कर देगी। मौजूदा कानूनों को सख्ती से लागू किया जाएगा। इसके निरस्त होने के बाद पोटा के कई प्रावधानों को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) में संशोधनों में शामिल कर लिया गया।
पहला आतंकवादी विरोधी कानून
टाडा भारत में आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए पहला कानून था। यह 1985 से 1995 तक लागू रहा। इस कानून को मुख्य रूप से पंजाब में बढ़ते उग्रवाद और खालिस्तान आंदोलन को रोकने के लिए लाया गया था, लेकिन बाद में टाडा को अन्य राज्यों में भी लागू किया गया। 1980 के दशक में भारत विशेषकर पंजाब में आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि देखी गई थी।
तत्कालीन आपराधिक कानून इन नई और जटिल आतंकवादी गतिविधियों से निपटने में अपर्याप्त साबित हो रहे थे। केंद्र सरकार को लगा कि आतंकवादियों से निपटने और उन्हें दंडित करने के लिए विशेष कानूनों और अधिक व्यापक शक्तियों की आवश्यकता है। टाडा ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों को आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियों से निपटने के लिए व्यापक शक्तियां दीं। इसने आतंकवादी गतिविधि को परिभाषित किया, जिसमें सरकार को डराने, लोगों में आतंक फैलाने, लोगों के किसी भी वर्ग को अलग-थलग करने, या विभिन्न वर्गों के बीच सद्भाव को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने के इरादे से बम, डायनामाइट या अन्य विस्फोटक पदार्थों का उपयोग करके किया गया कोई भी कार्य शामिल था।