नई दिल्ली । अमेरिकी टैरिफ की वजह से विश्व में मची आर्थिक उथल-पुथल के बीच ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा के आह्वान पर ब्रिक्स समूह की एक आपातकालीन वर्चुअल बैठक का आयोजन किया गया। जिसमें चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन शामिल हुए। जबकि भारत की तरफ से विदेश मंत्री डॉ.एस.जयशंकर ने इस बैठक में भाग लिया।
जयशंकर ने अपने संबोधन की शुरुआत में ही टैरिफ संकट से पार पाने के लिए समूह को एक जरूरी सुझाव देते हुए कहा कि बीते कुछ वर्षों में दुनिया का सामना भीषण चुनौतियों और संघर्षों से हुआ है। जिन्हें देखते हुए वर्तमान में ब्रिक्स का पूरा ध्यान वैश्विक अर्थव्यवस्था और वर्ल्ड ऑर्डर को स्थिर बनाने पर केंद्रित होना चाहिए। साथ ही अमेरिका का नाम लिए बगैर उसे संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि विश्व को रचनात्मकता और सहयोग की भावना के साथ व्यापार को बढ़ावा देना चाहिए। बाधाओं को बढ़ाना और वित्तीय आदान-प्रदान को जटिल बनाना कहीं से भी मददगार साबित नहीं होगा। गौरतलब है कि अमेरिका ने ब्रिक्स देशों पर ही सबसे ज्यादा टैरिफ लगाया है। जिसमें भारत पर 50 फीसदी, ब्राजील पर 50 फीसदी, चीन पर 30 फीसदी और दक्षिण अफ्रीका पर भी 30 फीसदी टैरिफ लगाया गया है। इसके अलावा अमेरिका के राष्ट्रपति ने रूस पर द्वितीयक पाबंदियां बढ़ाने को लेकर भी अपनी मंशा साफ कर दी है। जिससे रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर टैरिफ में और अधिक बढ़ोतरी की आशंका गहरा गई है। भारत भी इसमें शामिल है।
उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी से लेकर यूक्रेन, मध्य-पश्चिम एशिया में जारी संघर्षों, व्यापार-निवेश संकट और अप्रत्याशित जलवायु संबंधी घटनाओं ने न केवल सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) के हमारे एजेंडे की रफ्तार को धीमा किया है। बल्कि दुनियाभर में फेल हो रही बहुपक्षीय व्यवस्था के सच को भी उजागर कर दिया है। गंभीर तनाव के कई मुद्दे आज भी बिना किसी समाधान के यूं ही पड़े हुए हैं। जिनका विश्व व्यवस्था पर प्रभाव पड़ रहा है। यह एक सामूहिक चिंता का मसला है। जयशंकर ने कहा कि ब्रिक्स हालांकि विविधतापूर्ण समाज का प्रतिनिधित्व करता है। जिस पर उक्त घटनाक्रमों का गहराई से प्रभाव पड़ता है। पूर्व में समूह देश अपनी राष्ट्रीय नीतियों के मद्देनजर एक समान विचार को खोजते थे। जिसके तहत हमें आगे बढ़ना होता था। लेकिन आज हमारा ध्यान वैश्विक अर्थव्यवस्था और वर्ल्ड ऑर्डर की स्थिरता पर केंद्रित होना चाहिए। लेकिन यहां ये भी महत्वपूर्ण है कि हम अपना ध्यान संघर्षों पर भी लेकर जाएं। क्योंकि इनका विकास और सप्लाई चेन प्रभावों से सीधा संबंध है। उन्होंने ब्रिक्स के अन्य भागीदार देशों के राष्ट्राध्यक्षों का ध्यान न्यूयॉर्क में होने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के आगामी सत्र की ओर ले जाते हुए कहा कि यह हमारे लिए अवसर होगा। जब हम बहुपक्षीय व्यवस्था में सुधारों को लेकर विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। यूएनएससी और यूएन में सुधारों की नितांत आवश्यकता पर जयशंकर ने बल देते हुए कहा कि ब्रिक्स को इसके लिए सामूहिक रूप से आवाज उठानी चाहिए।
ग्लोबल साउथ की अनदेखी पड़ेगी भारी
विदेश मंत्री ने कहा कि मौजूदा समय में जारी संघर्षों का तत्काल समाधान ढूंढने की आवश्यकता है। ग्लोबल साउथ के देश खासतौर पर खाद्य, ऊर्जा और उर्वरक संकट से जूझ रहे हैं। जब शिपिंग को निशाना बनाया जाता है तो उससे केवल व्यापार ही नहीं बल्कि जीविका पर भी खतरा उत्पन्न हो जाता है। चुनिंदा संरक्षण वैश्विक जवाब नहीं बन सकता है। शत्रुता को शीघ्र समाप्त करने और कूटनीति के मार्ग पर लौटना ही एक मजबूत और वास्तविक समाधान है। उन्होंने कहा कि भले ही दुनिया नीतिगत चुनौतियों का सामना कर रही है। लेकिन हमें बड़ी समस्याओं जैसे जलवायु परिवर्तन से मुंह नहीं चुराना चाहिए। यह बेहद दुखद है कि आज की हकीकत में जलवायु कदम और जलवायु न्याय जैसे मुद्दे पिछड़ते हुए नजर आ रहे हैं। इस संबंध में हमें नए विचारों और कदमों की जरूरत है। जयशंकर ने भारत द्वारा उठाए गए ग्लोबल सोलर अलायंस, सीडीआरआई और ग्लोबल बॉयोफ्यूल अलायंस का भी उल्लेख किया।