कहा- गंभीर अपराध के आरोपियों को जांच में गलतियों के कारण बरी नहीं किया जा सकता
15 सितंबर को सुनवाई होने की उम्मीद
मुंबई । मालेगांव 2008 विस्फोट मामले में मुंबई सत्र न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले को पीड़ित परिवारों ने बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी है। दरअसल सत्र न्यायालय ने 17 साल बाद, सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। सभी आरोपियों को 20 हजार रुपये के निजी मुचलके पर बरी किया गया। अदालत ने सरकार को विस्फोट में जान गंवाने वाले 6 लोगों के परिवारों को 2-2 लाख रुपये और घायलों को 50,000 रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है। अब मालेगांव विस्फोट में पीड़ित निसार अहमद सैयद बिलाल सहित छह अन्य लोगों के परिवार ने विशेष एनआईए अदालत के फैसले को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने इस याचिका में दावा किया है कि जांच में हुई अक्षम्य गलतियाँ इतने गंभीर अपराध के आरोपियों को बरी करने का कारण नहीं हो सकतीं। पूरी साजिश बेहद गुप्त तरीके से रची गई थी, इसलिए इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मिलना मुश्किल था। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि आरोपी निर्दोष हैं, याचिका में दावा किया गया है। हाई कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि इस फैसले को तत्काल रद्द किया जाए, सभी बरी किए गए आरोपियों को नोटिस जारी किए जाएँ और गंभीर अपराध में उनकी संलिप्तता के लिए उनके खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई की जाए। इस याचिका पर 15 सितंबर को न्यायाधीश अजय गडकरी और न्यायाधीश रंजीतसिंह भोसले की पीठ के समक्ष सुनवाई होने की उम्मीद है। याचिका में कहा गया है कि एनआईए अदालत ने मालेगांव विस्फोट मामले के फैसले से यह उजागर किया है कि तत्कालीन सरकार द्वारा एटीएस के माध्यम से की गई जाँच महज दिखावा थी। जाँच एजेंसी और सरकारी पक्ष, आरोपियों के खिलाफ अदालत के समक्ष एक भी ठोस सबूत, प्रत्यक्षदर्शी पेश नहीं कर सके। क्या जिस मोटरसाइकिल पर विस्फोट होने का दावा किया गया था, वह मोटरसाइकिल थी? यह साबित नहीं हो सका। उस मोटरसाइकिल को वहाँ कौन लाया? यह साबित नहीं हो सका। क्या कर्नल प्रसाद पुरोहित के घर विस्फोटक लाए गए थे? यह साबित नहीं हो सका। यह भी साबित नहीं हो सका है कि अभिनव भारत ने इस साजिश को वित्तीय सहायता प्रदान की थी। इस मामले में कई गवाह गवाही देने से चूक गए हैं। उनमें से कई ने कहा कि एटीएस ने उनके बयान जबरन दर्ज किए थे। कुछ लोगों ने अदालत को बताया कि उन्हें ये बातें ठीक से याद नहीं हैं। इसलिए, अदालत ने अपने फैसले में इस बात पर ज़ोर दिया कि सरकारी पक्ष अपने द्वारा लगाए गए आरोपों को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है। अदालत ने स्पष्ट किया कि जाँच एजेंसी ने इस मामले में बिना सोचे-समझे यूएपीए की धारा लगा दी थी और यह भी कहा कि जाँच एजेंसी के मुँह पर करारा तमाचा मारा गया है।
- क्या है मामला?
वर्ष 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले का फैसला 17 साल बाद 31 जुलाई, 2025 को सुनाया गया। मालेगांव में एक पूजा स्थल के बाहर हुए इस विस्फोट में 6 लोगों की जान चली गई थी और 101 घायल हुए थे। इस मामले के बाद पहली बार हिंदू आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाया गया था। 19 अप्रैल को मुंबई सत्र न्यायालय के विशेष एनआईए न्यायाधीश एलके लाहोटी ने मामले की सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। हाई-प्रोफाइल आरोपियों, बदली जाँच एजेंसियों, बदले हुए जजों और अहम गवाहों के दलबदल समेत इन सभी घटनाक्रमों के कारण यह मामला पूरे देश में सुर्खियों में रहा है। हालांकि, एनआईए अदालत ने पुख्ता सबूतों के अभाव में सभी को बरी कर दिया था। - कौन हैं आरोपी?
इस मामले में पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, सेवानिवृत्त मेजर रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी उर्फ स्वामी अमृतानंद, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी के खिलाफ हत्या, विस्फोटक अधिनियम, शस्त्र अधिनियम, आतंकवाद निरोधक अधिनियम और यूएपीए से संबंधित आईपीसी की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था। इस मामले में श्याम साहू, प्रवीण टकलकी, रामजी कालसंग्रा और संदीप डांगे को फरार आरोपी दिखाया गया था।