इंदौर महात्मा गाँधी से सम्बद्ध एक असाधारण दस्तावेज हमारे परिवार के अमूल्य निधि है. वह एक 30 /- का चेक है. लोक मानस ने सदा गाँधी जी को ” महात्मा ” कह कर संबोदित किया लेकिन गाँधी जी अपना नाम ” मो . क. गाँधी ” या ” एम् के गाँधी ” ही लिखते रहे . उन्होने खुद को कभी ” महात्मा गाँधी ” नहीं लिखा. परंतु जिस चेक को हम अपने परिवार की निधि मानते है , वह इसका अपवाद है. गाँधी जी ने खुद उस चेक पर “महात्मा गाँधी” के नाम से सिग्नेचर किये थे.
यह चेक श्रमजीवी पत्रकारिता के जनक और हमारे दादा जी श्री हुकुम चंद जी नारद ने महात्मा गाँधी के नाम से काटा था . यह जनवरी १९४५ की घटना है जब महात्मा गाँधी हरिजन उद्धार के लिये आर्थिक सहायता की अपील देश वासियो से कर रहे थे. इस अपील के उत्तर में दादा जी ने ३०/- की रकम का एक क्रॉस चेक भारत बैंक जबलपुर ब्रांच से महात्मा गाँधी के नाम भेजा था. कठिनाई उस समय आयी जब बैंक ऑफ़ नागपुर की वर्धा ब्रांच ने उसका भुगतान करने से मना कर दिया . चेक ” महात्मा गाँधी ” के नाम से काटा गया था . गाँधी जी ने इंग्लिश में ” एम् के गाँधी ” के नाम से सिग्नेचर किये थे . बैंक ने उसे वापिस कर दिया क्यों कि ” एम् के गाँधी ” की पात्रता बैंक के नियम के अनुसार सिद्य नहीं होती थी. अतः गाँधी जी ने इन ३०/- के लिये अपने जीवन का नियम तोडा और वापिस आये चेक के पीछ्ये ” एम् के गाँधी ” के ऊपर “महात्मा गाँधी” के नाम से दूसरे सिग्नेचर कर दिये. फिर भी यह रकम गाँधी जी को नहीं मिल पाई. पता चला , भारत के किसी भी बैंक में न तो ” एम् के गाँधी ” का कोई अकाउंट है और न महात्मा गाँधी का. परेशान महात्मा गाँधी ने चेक दादा जी को वापिस कर दिया और उनसे अनुरोध किया कि वह अमाउंट जरूर भेजे लकिन चेक ” आल इंडिया हरिजन फण्ड ” के नाम से काटे. बापू के आदेश का पालन हुआ. रकम बापू को मिल गई और दादा जी को वापसी में ओरिजिनल चेक मिला जिस पाए गाँधी जी ने अपने को ” महात्मा ” लिखा है. शेष कुछ भी नहीं है. न तो लोक कल्याण के लिये पाई पाई जोड़ने वाले महात्मा गाँधी और न ही हमारे दादा जी . वह भारत बैंक भी समाप्त हो गया जिसके नाम चेक काटा गया था.