भारत रत्न महामना मदनमोहन मालवीय

– डॉ. बलदेवराज गुप्त
जन्म 25 दिसम्बर 1861
अवसान 12 नवम्बर 1946
भारत राष्ट्र के हर युवा में एक चाह होती है कि वह देश के सर्वोच्च विश्वविद्यालय बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) में अध्ययन कर सके। सबको अवसर नहीं मिलता। मुझे भी नहीं मिला। महामना मदनमोहन मालवीय के इस उच्च शिक्षण केन्द्र में मुझे पत्रकारिता एवं जनसंचार का पाठ्यक्रम शुरू करने और पढ़ाने के निमित सहायक प्रोफेसर के रूप में (सन 1973) में नियुक्त किया गया। महामना के ज्ञान स्वप्न मंदिर में सब यथार्त और व्यवहारिक जीवनशैली से जुड़ा पाया।
सम्पूर्ण हिन्दूवादी मालवीय जी देश के पहले नेता थे, जिन्होंने उद्घोषणा नहीं की। भारत हिन्दुओं का, मौहम्मदान, सिख, पारसियों व अन्य सभी समुदायों का देश है। कोई एक समुदाय दूसरे पर दबाव न डाले, एकजुट, आपसी विश्वास इसका आधार है। अंग्रेजों के कम्युनल अवार्ड का उन्होंने डटकर विरोध किया। कांग्रेस को भी झकझोरा और उत्तर भारत का भ्रमण कर अंग्रेजों के इस खतरनाक खेल से आगाह किया। अंततः 1936 में कांग्रेस ने अंग्रेजों के इस कम्युनल अवार्ड को मानने से इंकार कर दिया।
मालवीय जी को भारत रत्न देकर उनका सम्मान किया गया। इसमें काफी वक्त लगा। इस काम को पहले किया जाना चाहिए था। मालवीय महान पंडित और अनेक विषयों के ज्ञाता थे। गांधी के बाद वह राष्ट्रीय आन्दोलन के सबसे बड़े नेता थे। विश्व कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, पं. जवाहरलाल नेहरू, सर एम. विश्लेसरया जैसे लोग मालवीय की प्रतिभा के कायल थे। गांधी जी उन्हें प्रातः स्मरणीय कहते थे। टैगौर उन्हें महामना मानते थे। डॉ. राधाकृष्णन का मत था कि भारतीय संस्कृति का प्रतीक थे मालवीय। जवाहरलाल नेहरू ने प्रयाग में मालवीय जन्म शताब्दी वर्ष का उद्घाटन करते हुए कहा था ‘मालवीय जी ने भारतीय राजनीतिक इतिहास में पिछले 70 वर्षों में परिवर्तन की जबरदस्त छाप छोड़ी थी।
वकील के नाते उन्होंने 60 साल कांग्रेस के सिपाही बनकर संविधान सुधार के कार्य में मदद की। चार बार कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। औद्योगिक आयोग रिपोर्ट- बेबाक टिप्पणी मालवीय जी के साहस का प्रतीक थी। जलिया वाला काण्ड हो या चौरा चौरी की घटना आपने इन केसों को मानवता के नाते लड़ा। गोलमेज कांफ्रेंस में आपकी भागीदारी का लोहा अंग्रेजों ने भी माना।
दूरदर्शी मालवीय जी के बारे में कहा जाता था ‘हिन्दू हो तो मालवीय जी जैसा, जिसे समाज के हर समुदाय ने प्यार, दुलार और मान दिया। बीएचयू बनाने के लिए उन्होंने दान लिया, भीख मांगी। पहले महलों और कुटिया के दरवाजे खटखाये। राजा-महाराजा हो या नवाब (हैदरकद) सबने उन्हें सहयोग और धन दिया। उन्हें दुनिया का सबसे बड़ा भिखारी कहा गया। भीख और दान के पैसे से उन्होंने दुनिया का विशाल शिक्षा मंदिर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय बनवा दिया।
डॉ. राधाकृष्णन को 1927 में बीएचयू का दर्शन शास्त्र (फिलासफी) का प्रोफेसर बनाया गया। 1938 में मालवीय जी का स्वास्थ्य गिरने लगा तो उन्होंने कायाकल्प कराया और डॉ. राधाकृष्णन को बीएचयू का वाइस चांसलर नियुक्त किया गया। मालवीय जी के अनुरोध से राधाकृष्णन जी ने आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और कलकत्ता विश्वविद्यालय की जिम्मेदारी के बावजूद स्वीकार किया था।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस प्रान्तीय और राष्ट्रीय ऐसम्बलियों के सदस्य के रूप में ही नहीं, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के संस्थापक सनातन धर्म सभा एवं हिन्दी साहित्य सम्मेलन जैसी संस्थाओं के प्रेरणा स्त्रोत मालवीय जी का जन्म 25 दिसंबर 1861 को प्रयाग में पं. बैजनाथ मालवीय के घर हुआ था। इलाहाबाद और कलकत्ता विश्वविद्यालय से बीएएलएलबी की पढ़ाई करने के बाद वे अध्यापक, वकील और पत्रकार बने। वे पहले स्नातक थे जिन्होंने हिन्दोस्थान दैनिक अखबार का सम्पादन (1887-89) किया। अभ्युदय साप्त. 1907, महारथी दिल्ली मासिक, काशी से सनातन धर्म साप्ताहिक। विश्वबन्धु (लाहौर) लीडर हिन्दुस्तान टाइम (दिल्ली) अंग्रेजी दैनिक भारत, हिन्दुस्तान भी मालवीय की प्रेरणा से निकले थे। बहुत कम लोगों यह ज्ञात होगा कि वे मकरन्द उपनाम से कविताएं भी लिखते थे। बनारस हिन्दू यूनि. के जनसम्पर्क विभाग के हाऊस जर्नल में मैंने उनकी कुछ कविताओं को खोजकर प्रकाशित किया था। मालवीय जी का पत्रकारिता और सम्पादकीय स्वतन्त्रता पर अप्रमित योगदान है। महामना मदनमोहन मालवीय के महा विश्वविद्यालय बीएचयू में जिन महान विभूतियों ने अध्यापक के रूप में सेवा की, उनमें से कुछ डॉ. तेजबहादुर सप्रु, डॉ. सी.वी. रमन, डॉ. भगवान दस, पी.सी.रे. डॉ. शान्ति स्वरूप भटनागर, प्रो. एन.एन. गोडबोले, गोरख प्रसाद श्रीवास्तव, डॉ. श्यामाचरण डे, (गणित), बीखल साहनी, पी.के. तेलंग, (इतिहास) जदुनाथ सरकार, गुरमुखनिकाल सिंह, जे.बी. कृपलानी, गोपीनाथ कविराज, डॉ. टर्नर, प्रो. विंâग्ज, डॉ. बलदेव उपाध्याय, राधा कुमुद मुकर्जी, चन्द्रघर शर्मा गुलेरी, रामचन्द्र शुक्ल (हिन्दी) अयोध्या सिंह उपाध्याय, पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी आदि।
रूग्ण मालवीय को देखने गांधी, नेहरू आदि अनेक नेता पधारे थे। 12 नवम्बर 1946 को महान विभूति गोलोकवासी हो गई।
…/राजेश/12.35 / 24 दिसंबर 2018