महान क्रांतिकारी सुखदेव जन्मदिन विशेष

23 मार्च 1931  समय 7:33 मिनट स्थान लाहौर सेन्ट्रल जेल, तीन नोजवानों को (उम्र यही थी 23 -24 वर्ष) समय से पूर्व नियमों को तांक पर रखकर फाँसी दे दी जाती हैं। कौन थे वो नोजवान? क्यो था ब्रिटिश हुकूमत को उनकी फाँसी के लिए इतना उतावला पन? हाँ अपराध तो बड़ा गम्भीर था उनका, जिस उम्र में शादी करके अपना घर बसा लेना चाहिए था। उस उम्र में वे मतवाले वतन से मोहब्बत कर बैठे। क्रूर ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला कर रख दी।

वे महान क्रांतिकारी थे “भगतसिंह ,सुखदेव ,राजगुरु” जिनके नाम का ख़ौफ़ ही अंग्रेजो को इतना था कि तय दिन से एक दिन पूर्व फाँसी दे दी। 23 मार्च को समझने से पूर्व हमें 15 मई 1907 को  समझना होगा। उस व्यक्तित्व को समझना होगा जिसने अंग्रेजो की आँखों से नींद छीन ली थी। वह अपने निजी जीवन मे कैसा था, चलो आज इसी बात पर प्रकाश डालते हैं।

15 मई 1907 लुधियाना के नोधरा में रामलाल थापर व माता रल्ली देवी के घर जन्म होता है।

सुखदेव का पिताजी बचपन मे ही चल बसे। उनका लालन पोषण ताऊजी अचिन्तराम  जी किया।

ताऊजी जी समाज सेवा व देशभक्ति कार्य मे अग्रसर थे। जिनका पूरा-पूरा असर सुखदेव पर पड़ा। सुखदेव बचपन मे ही गरीब व अछूत कहे जाने वाले बच्चों को पढ़ाते थे। क्रांतिकारी कोई भी एक दिन में नहीं बन जाता, सुखदेव भी बचपन से ही इस और अग्रसर हो गए थे। समय के साथ-साथ क्रांति के मार्ग पर बढ़ते ही गए। मेट्रिक पास करने के बाद  जब लाहौर नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया। वहाँ मुलाकात हुई इतिहास के अध्यापक जयचंद विध्यांलकर जी से । जयचंद विध्यांलकर जी ने ही सुखदेव में व्यवस्थित क्रांति का बीज डाला। यहाँ भगतसिंह जैसा साथी भी मिला जिसके साथ सुखदेव ने हँसते हुए फाँसी का फंदा चूमा। सुखदेव  स्वभाव से बहुत ही जिद्दी थे, वे हर चीज को पहले आजमाते फिर विश्वास करते थे। एक मजेदार किस्सा हैं उनकी इसी सनक का “सुखदेव ने कही पढ़ा था, जुजुत्सु में अगर किसी ताकतवर इंसान के नाक पर प्रहार करो तो वो बेसुध हो जाता है, एक बार वो बाजार से निकल रहे थे। उन्हें यह बात याद आ गए फिर वे चारो तरफ नजर दौड़ने लगे किसे निशाना बनाए तभी देखते हैं सामने से एक पहलवान आ रहा है, वे सीधे जाते हैं और उसकी नाक पर वार कर देते हैं, पहलवान वही गिर जाता है और झटपटाने लगता है। सुखदेव वही खड़े रहते हैं देखते हैं कब तक ये इसी हाल में रहेगा कुछ समय के बाद जब पहलवान सामान्य होता है ओर अपने ऊपर वार करने वाले को जब अपने सामने देखता है तो गुस्से से लबरेज होकर सुखदेव को मारने लगता है, सुखदेव चुप चाप मार खाते रहते हैं।” जब यह बात उनके साथियों को पता चली तो सबने उनकी बहुत खिचाई की।

सुखदेव को भुट्टा बहुत पसंद था, भुट्टा वे बेहद चाव से खाते थे।  अक्सर बाजार से निकलते हुए भुट्टा ले लिया करते और जो साथी साथ मे रहता उसे भी आग्रह किया करते थे। सुखदेव की सहनशीलता का भी कोई जवाब नहीं था, उनके बाएँ हाथ पर ॐ गुदा हुआ था क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय होने के बाद उन्होंने अपने हाथ से ही उस ॐ पर तेजाब डाल जला दिया, ताकि पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर उनकी शिनाख्त नही हो सकें, बहुत पीड़ा होने पर भी मुंह से उफ्फ तक नहीं निकला, साथियों के आग्रह करने पर भी वे इलाज कराने नही गए ।

जब सुखदेव को पता चला कि असेम्बली बम एक्शन मेें भगतसिंह का नाम नहीं हैं, वे तुरंत भगतसिंह के पास जाते हैं और तुरंत उन्हें डाट देते हैं, ” भगत तुम मौत से डर गए, लगता है तुम स्त्री प्रेम में पड़ गए हो, तुम क्रांति के मार्ग से विचलित हो गए” सुखदेव अपनी ही बात कहते रहे भगतसिंह की एक दलील ना सुनी। भगतसिंह तुरंत संघटन की मीटिंग बुलाते हैं , ओर अपने नाम पर सबकी सहमति प्राप्त करते हैं। सुखदेव को अच्छे से पता था वे अपने घनिष्ठ मित्र को एक बहुत बड़े सफर के लिए तैयार कर आए हैं। सुखदेव जब दुर्गा भाभी के पास पहुँचते हैं। उनकी आंखें लाल थी, जैसे वे लगातार रो रहे हो, खाना भी नहीं खाया हो, एक दम खामोश से। आखिर हो भी क्यो नहीं भगतसिंह सुखदेव का स्नेह किसी भाई से कम थोड़े ना था।

कुछ ऐसा था वो महान क्रांतिकारी ,

ऐसे वीर को जन्मदिन पर क्रांतिकारी सलाम।

:-कुलदीप सिंह चंद्रावत

राष्ट्रीय सहसचिव, ऐलान-ए-इंक़लाब

सम्पर्क – 8305224206