राजस्थान में भूजल विकास की स्थिति हुई खराब

डार्क जोन में नागौर जिला
जयपुर। गर्मी की शुरुआत होते ही प्रदेश में पानी के लिए त्राहिमाम मच जाता है हर साल गर्मियों में प्रदेश की जनता बेहाल रहती है और हर बार जनता को पानी के लिए सडक़ों पर आना पड़ता है. पानी की कमी की पूर्ति के लिए सरकारें भरसक प्रयास करती है लेकिन पानी की समस्या का हल नहीं हो पाता है. पिछले लम्बे समय से देखा गया है कि मानसून भी प्रदेश का साथ नहीं दे रहा इसके साथ ही जल दोहन की बढ़ोतरी के कारण देश व प्रदेश में जल संकट गहराता जा रहा है पेयजल के लिए जनता नलकूप पर आश्रित हो गई है, लेकिन अब नलकूप भी सूखने की कगार पर आ गई है।
ऐसा ही हाल डीडवाना के गांव का है जहां का प्राचीन तालाब ही एक मात्र साधन है, यहां के आमजन और पशुओं की प्यास बुझाने का. जिस तालाब में पशु तैरते हैं उसी तालाब से यहां के लोग पानी पीने को मजबूर है क्योंकि पूरे गांव में एक मात्र जल संसाधन होने की वजह से ना तो ग्रामीण खुद प्यासे रह सकते हैं और ना ही अपने पशुधन को प्यासा छोड़ सकते हैं. लेकिन सेवा गांव के लोग इस लिहाज से खुश किस्मत हैं कि तालाब से ही सही इनके नसीब में पानी तो है वर्ना क्षेत्र में कई गावों के हालात ऐसे हैं कि हर बार गर्मी के मौसम में यहां पानी को लेकर त्राहिमाम की स्थिति रहती है। भारत में हर वर्ष चार हजार घन किमी पानी बरसता है, किंतु उपयोग लायक केवल 1140 घनकिमी है. इसमें 690 घन किमी सतही जल व 450 घन किमी भूजल है. भूजल स्त्रोत पर बेतहाशा नलकूपों की वृद्धि से दबाव बढा है. अत्याधिक भूजल दोहन से पृथ्वी की कोख में उपलब्ध यह संसाधन रीतने लगे है। उन्होंने बताया कि केन्द्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार देश के 5723 खण्डों में से 4078 सुरक्षित रहे हैं तथा 839 अतिदोहित श्रेणी में है वहीं राजस्थान में भूजल विकास की स्थिति 1984 में 35 फीसदी से अधिक थी, जो बढक़र 2008 में 137 फीसदी से अधिक हो गई तथा प्रदेश के 237 खण्डों में से मात्र 30 सुरक्षित रह पाई और 164 अतिदोहित श्रेणी में आ गई. नागौर जिले की भूजल विकास स्थिति 193 फीसदी से ज्यादा हो गई है. प्रदेश की 10 फीसदी से अधिक पेयजल योजनाएं भूजल आधारित है. कृषि व उद्योग में भी भूजल का अत्यधिक उपयोग होने से भूजल स्तर प्रदेश में लगातार गिरा है और भूजल गुणवत्ता भी प्रभावित हुई है।
अशोक शर्मा/ 5:10 बजे/ 15 मई , 2019