अनीतकारी पुरुष को मिला अभय वरदान
जी भर मन की कीजिए जो मन में अरमान
कितना तूं तड़पाएगा मचा के हाहाकार
अल्पायु तेरी लिखी जान सके तो जान
तेरा शैशव काल में क्यों न हो गया अंत
कोख लजाने आगया लिखा भाग्य भगवंत
कुल कलंक माथे लिखा ,मिटे न लाख उपाय
उपदेशों से सींच कर व्यभिचारी बने न संत
अंधेर नहीं पर देर है,करो समय का ध्यान
पापी घट भर जाय जब ,अंतिम है शमशान
पाप पुण्य के खेल में जीव रहा भरमाय
अंतिम खाली हाथ हों निकल जायं जब प्रान।
चेत सके तो चेत जा अल्प समय है शेष
कर ले पश्चाताप तूं, वरन् पायेगा क्लेश
करनी जो तूने करी फल पाना उसका शेष
दीक्षित क्यों संताप कर जो लिखा भाग्य संदेश
बच्चूलाल दीक्षित
ग्वालियर / दबोहा