एक तरसी हुई निग़ाह को राहत दे
अपने दीवाने को अपनी चाहत दे
प्यासी निगाहें दरवाज़े पे टिक जाती हैं
जब भी हवा कानों को कोई आहट दे
इस दिल को मिलन का हार पहना
इस इंतज़ार को वस्ल की सजावट दे
ज़हरीली लग रही है मुझको हवा
तू अपनी साँसों की मिलावट दे
मैं मुहावरा तेरे प्यार का हो गया हूँ
मुझको भी तो कोई कहावत दे
ज़ाकिर हुसैन “अमि”
अध्यक्ष-म.प्र.लेखक संघ
सनावद-मोब-8319000979