अनकहे अल्फ़ाज़ …….

समय का चक्र काफी तेजी से बीतता गया।

रिश्ते -नाते कुछ जुड़ा तो कुछ टूटता गया ।।

पहले तो अकेले में अंधेरो से डर लगता था हमें ।

लेकिन  अब अकेलपन से प्यार होता गया ।।

कभी एक- दुसरे से लड़ते -झगड़ते थे।

खेलने के लिये बस उत्साहित रहते थे ।।

आज एक दूजे को देखने के लिए तरसने लगे हम ।

जिंदगी तो वहीं हैं बस उम्र के साथ  बढ़ते गये हम ।।

अपने पराये होने लगे पराये अपने लगने लगे ।

इस दुनियां की भीड़ में खुद खोने लगें ।।

न कोई उम्मीद बचा है न कोई इच्छा हैं ।

हर घड़ी हर मोड़ पर बस इम्तिहान देने लगे ।।

खुद को बदले तो कभी अपने शौक को बदलने लगें।

दूसरो के ख़ातिर इस दुनियां में खुद को भूलने लगें ।।

पहले वक्त तो बहुत था लेकिन कुछ काम नहीं थी ।

अब काम बढ़ते गये और जीवन मे वक्त कम होने लगे ।।

मनीषा कुमारी

विरार मुम्बई