तेरा-मेरा मजहब

चूड़ी-जी बहुत दु:खी हैं।

कंगन-वो क्यों?

चूड़ी-जब मुझे बेचने के लिए, एक टोपी वाला तिलक वालों के मोहल्ले में गया, तो तिलक वालों ने उसे धुन दिया।

कंगन-वो क्यों?

चूड़ी-क्योंकि तिलक वालों के मोहल्ले में, टोपी वाला चूड़ियां बेचे, यह तिलक वालों को कतई पसंद नहीं ?

कंगन-ओह! ये बात है, यह तो लिंचिंग है।

चूड़ी-वो क्या होता है, भाई?

कंगन-तू न समझेगी,पर तू काहे दुःखी है?

चूड़ी-मैं यह सोच रही हूं, कहीं टोपी वालों के मोहल्ले में, तिलक वाले मोहल्ले का कोई बंदा कुछ बेचने न पहुंच जाए, फिर तो उस बंदे के साथ वही होगा, जो तिलक वालों ने टोपी वाले के साथ किया।

कंगन-पर तू काहे यह सब सोच-सोच हलकान है। तेरे को इन लड़ाई-झगड़ों से क्या मतलब?

चूड़ी उबासी लेते हुए- इन लोगों के मजहबी झगड़ों-फसादों में कहीं, हमारा मानवता का मजहब न खराब हो जाए, कहीं हमारे दामनों पर कट्टरपंथियों के बदनुमा निशां न पड़ जाएं?

कंगन-सो तो है, पर यह सब बहुत  सोच कर भी, हम कुछ नहीं कर सकते?

चूड़ी-पर ईश्वर से यह दुआ जरूर कर सकते हैं कि इन कट्टरपंथियों से हमें मुक्ति दे।

-सुरेश सौरभ

निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी यूपी

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