मच्छरों की प्रजनन संबंधी सेहत को घटाने में लगे हैं वैज्ञानिक

-इसीकी बदौलत मच्छर वयस्क होकर सेक्स के लिए प्रेरित होता है
पेरिस । दुनिया का सबसे घातक जानवर कौन सा है? वो शेर, बाघ या शार्क या सांप नहीं है। वो मच्छर है। जिसके काटने और जिसकी वजह से फैली बीमारियों से हर साल दुनिया में करीब 4 लाख लोगों की मौत होती है। इनमें सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं बच्चे। लेकिन अब वैज्ञानिक एक ऐसा काम कर रहे हैं, जिससे मच्छरों की प्रजाति दुनिया में कम हो जाएगी। सवाल ये भी उठ रहा है कि कहीं ऐसा न हो कि मच्छर धरती से खत्म ही हो जाएं? फ्लोरिडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में बायोलॉजिकल साइंसेस के प्रोफेसर फर्नांडो जी नोरीगा और उनकी टीम मच्छरों की प्रजनन संबंधी सेहत यानी रिप्रोडक्टिव फिटनेस को घटाने में लगे हैं। अगर मच्छरों की पैदा करने की क्षमता खत्म या कम हो जाएगी। तो कम मच्छर पैदा होंगे। इससे मच्छरों की आबादी में कमी आएगी। यानी दुनिया को मच्छर जनित बीमारियों से निजात मिलेगा। लेकिन सवाल ये भी है कि कहीं मच्छरों की प्रजाति ही खत्म न हो जाए।
प्रो फर्नांडो ने बताया कि हमने अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की है। हम एक ऐसे हार्मोन का अध्ययन कर रहे हैं, जो मच्छरों की प्रजनन क्षमता को सक्रिय रखता है। इसके साथ ही उनके सेक्स संबंधी व्यवहार को बढ़ाता है। अगर हम इस हॉर्मोन की मात्रा मच्छरों में घटा दें, तो मच्छर प्रजनन करने लायक बचेंगे ही नहीं। उनकी सेक्स करने की इच्छा खत्म हो जाएगी। अगर होगी भी तो ज्यादा मच्छर पैदा नहीं होंगे। प्रो फर्नांडो जेनेटिकली मॉडिफाइड एडीस एजिप्टी मच्छरों को पैदा कर रहे हैं, जो इस हॉर्मोन को बना नहीं सकते। ये मच्छर ही पीला बुखार, डेंगू और जीका का संक्रमण फैलाता है। ऐसा नहीं है कि ये मच्छर सेक्स नहीं करेंगे… बच्चे पैदा नहीं कर पाएंगे। ये करेंगे लेकिन इनसे पैदा होने वाले मच्छरों से किसी तरह की बीमारी नहीं फैलेगी। क्योंकि उस हॉर्मोन के जरिए ही ये किसी को नुकसान पहुंचाने का व्यवहार करते हैं। प्रोफेसर ने बताया कि हम फिलहाल उस हॉर्मोन को समझने की कोशिश कर रहे हैं। ताकि हम उसके जरिए मच्छरों को नियंत्रित कर सकें। सिर्फ मच्छर ही नहीं, वह हॉर्मोन कई अन्य कीड़ों और मकोड़ों में मिलता है। हम उसके जरिए उनका भी नियंत्रण कर सकते हैं। उनकी आबादी पर विराम लगा सकते हैं। या फिर उन्हें किसी भी तरह की बीमारी फैलाने से रोक सकते हैं। मधुमक्खियों, तितलियां और मच्छर सभी एक खास तरह का हॉर्मोन प्रोड्यूस करते हैं। ये हॉर्मोन उनके विकास में काफी ज्यादा मदद करता है। उनके शरीर में कई तरह के कार्यों को करवाता है। उनके बिहेवियर को नियंत्रित करता है। इसी हॉर्मोन की वजह से मच्छरों का लार्वा एक वयस्क मच्छर बनने में मदद करता है। इसी की बदौलत मच्छर वयस्क होकर सेक्स करने के लिए प्रेरित होता है। मच्छरों के जिस हॉर्मोन की बात हो रही है, उसे मिथाइल फार्नीसोएट कहते हैं। इसी हॉर्मोन की वजह से कीड़े, खोलदार समुद्री जीव, मच्छर प्रजनन की क्रिया करते हैं। इसी हॉर्मोन की वजह से इन जीवों को कई गुना ज्यादा बच्चे पैदा करने की क्षमता मिलती है। फर्नांडो के साथ मार्सेला नोउजोवा, फ्रांसिस्को फर्नांडेज लीमा और मैथ्यू डिगेनरो भी काम कर रहे हैं। ये चारों वैज्ञानिक मच्छरों के पीछे पड़े हुए हैं। मार्सेला नोउजोवा ही इस प्रोजेक्ट की मास्टरमाइंड हैं। मार्सेला ने ही प्रयोगों को डिजाइन किया है। जिनोम एडिटिंग, म्यूटेंट मच्छर बनाना आदि सारे काम वहीं कर रही हैं। मार्सेला ने बताया कि हम इस काम के लिए मीडिएटेड म्यूटाजेनेसिस का उपयोग कर रहे हैं, जिससे हम एडीज एजिप्टी मच्छरों के जीन में ऐसे बदलाव कर रहे हैं कि वो एमएफ हॉर्मोन को कैटेलाइज करने के लिए शरीर में एंजाइम ही न बना पाएं।
मार्सेला ने कहा कि अगर एमएफ हॉर्मोन को सक्रिय करने का एंजाइम बनेगा ही नहीं तो प्रजनन का मन ही नहीं होगा। अगर किसी वजह से हो भी जाता है तो उससे पैदा होने वाले बच्चे मच्छर भी जेनेटिकली मॉडिफाइड होंगे। वो किसी को अगर काटेंगे तो उससे बीमारियां नहीं फैलेंगी। क्योंकि हमने एडीज एजिप्टी के नर मच्छरों को प्रजनन करने लायक छोड़ा ही नहीं है। साथ ही कुछ मादा म्यूटेंट मच्छर भी हैं, जो बाहर जाकर अगर किसी गैर-म्यूटेंट मच्छर के साथ प्रजनन की क्रिया करती हैं, तो उससे कोई फायदा नहीं होगा। मार्सेला ने बताया कि गैर-म्यूटेंट मादा मच्छर आमतौर पर 100 अंडे देती हैं। लेकिन हमनें ऐसी व्यवस्था कर दी है कि अब वो सिर्फ 50 अंडे ही दे पाएगी। यानी मच्छरों की आबादी में आधे की कटौती। हमने जिन मच्छरों को म्यूटेंट बनाया है वो एमएफ पैदा कर ही नहीं सकते। वो लार्वा से वयस्क बनने की प्रक्रिया में ही मर जाएंगे। अगर कुछ बच भी जाते हैं तो वो प्रजनन करने लायक बचेंगे ही नहीं।