रोटी

कहने के लिए 

रोटी अमूल्य है

पर इसकी कीमत हमेशा 

लगाई जाती है।

कुछ शब्दों से बनी 

रोटी को सबने लिखा,

इतना लिखा कि शब्द 

कोश खाली हो गए

पर रोटी जस की 

तस बनी रही।

भूखों को जीवनदान देने 

के लिए अमृत संजीवनी है,

किसी का मान-

सम्मान है रोटी।

पर कुछ लोगों के लिए 

व्यापार का साधन है,

वह भी अवांछनीय 

तत्वों के लिए।

जो रोटी की आड़ में 

सारे गोरखधंधे करते हैं,

खेलते हैं किसी के 

भावनाओं से,

मारते हैं किसी के 

पेट पर लात,

छीन लेते हैं उन 

नौनिहालों का हक 

जो वाकई में हकदार होते हैं।

विवशता क्या न करवाए

नोच डालते हैं नरगिद्ध  

पापी पेट के लिए

दो रोटियां जुटाने के लिए 

मजबूर मां,बेटी,बहन, पत्नी,

आदि रिश्तों से

 समृद्ध औरत को।

बेंच डालते हैं अस्मिता 

मान-सम्मान की,

उछाल देते हैं शरेआम 

बाबुल की पगड़ी को

मसला दो जून की 

रोटी का रहता है।

अनुपम चतुर्वेदी,सन्त कबीर नगर, 

उ०प्र0