——————-
है घनी अंधियार जंग में
जलना मेरी नियति है
मैं रहूं अंधियार में हमेशा
उजियारा फैलाना मेरा
ईमान धर्म कर्म निष्ठा है।
न जाने कितने थपेड़े
आंधी तूफां के खाते खाते
उफ्ह तक नहीं किया मैंने
बस कर्तव्य की बलिबेदी पर
जलकर उत्सरजित हुआ हूं।
मेरा नाता तुम सबसे
सदियों सदियों पुराना है
जिस माटी मैं तुम जन्में
मैं भी बस उसमें जन्मा हूं।
कहने को तो नन्हा सा हूं
हिमालय पर तैनात सेनानी
मैं देहरी का तटस्थ प्रहरी हूं
जिन हाथों से में गढ़ा हूं
उसके जीवन का सपना हूं
जी हां मैं माटी का नन्हा सा
जगमगाता मुस्कराता दीया हूं।
लाल बहादुर श्रीवास्तव
9425033960