राम

सुविधाओं के शीशमहल को

जो छोड़ेगा होगा राम।

कल जिसको सिंहासन मिलता

मिला उसे वल्कल बाना,

राजमुकुट सिर आते-आते

पड़ा उसे जंगल जाना,

आने वाली विपदाओं का

मुख मोड़ेगा होगा राम।

गिरि-कानन के धूल-शूल को 

जिसने अंगीकार किया,

दुःख में,सुख में सहज रमा जो

हंस कर झंझा पार किया,

छल-प्रपंच के कूट -जाल को

जो तोड़ेगा होगा राम।

कोल-भील हों या मुनि-ज्ञानी

सबके साथ सहर्ष रहे,

जन-जीवन में सहज घुल ग्रे

यूं ही चौदह वर्ष रहे,

भटक रहे असहाय जनों को

जो जोड़ेगा होगा राम।

करवातीं हों सूपनखाएं

या डंसते हों खर-दूषन,

डरा-डरा हो जन-मन सारा

भय बस इन्हें कहे भूषन,

इनके भारी पाप घड़ों को 

जो फोड़ेगा होगा राम।——-

अशोक मिश्र प्रवक्ता अंग्रेजी इंटर कालेज प्रताप गंज जौनपुर।