अंधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश !!

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मन को करें प्रकाशमय, भर दें ऐसा प्यार !

हर पल, हर दिन ही रहे, दीपों का त्यौहार !!

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दीपों की कतार से, सीख बात ले नेक !

अँधियारा तब हारता, होते दीपक एक !!

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फीके-फीके हो गए, त्योहारों के रंग !

दीप दिवाली के बुझे, होली है बेरंग !!

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दीये से बात्ती रुठी, बन बैठी है सौत !

देख रहा मैं आजकल, आशाओं की मौत !!

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बदल गए इतिहास के, पहले से अहसास !

पूत राज अब भोगते, पिता चले वनवास !!

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रुठी दीप से बात्तियाँ, हो कैसे प्रकाश !

बैठा मन को बांधकर, अंधियारे का पाश !!

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पहले से त्यौहार कहाँ, और कहाँ परिवेश !

अंधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश !!

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मैंने उनको भेंट की, दिवाली और ईद !

जान देश के नाम जो, करके हुए शहीद !!

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— डॉo सत्यवान सौरभ,

रिसर्च स्कॉलर,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

333, परी वाटिका, कौशल्या भवन,

बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045